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रुासागर में प्रीष्मकाल
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नौका द्वारा पार किया । १ नाविक मेरा हाथ पकड़ शनैः शनै मुझे स्थल पर पहुॅचा छाया । उसका हृदय दयासे परिपूर्ण था । मैंने उसे उपकारी मान अपने पास जो २ गज खादीका दुपट्टा था वह दे दिया । उसे लेकर वह बहुत प्रसन्न हुआ तथा धन्यवाद देता हुआ चला गया । वहाँपर जो मानव समुदाय था वह भी प्रसन्न हुआ । यद्यपि मेरी यह प्रवृत्ति विशेष प्रशंसाकी पोषक नहीं परन्तु मैं प्रकृति पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकता । संसारमे वही मनुष्य इस संसारसे मुक्त होनेका पात्र है जो परपदार्थका संपर्क त्याग दे । परपदार्थका न तो हम कुछ उपकार ही कर सकते हैं और न अनुपकार ही । संसारके यावन्मात्र पदार्थ आत्मीय आत्मीय गुणपर्यायोंसे पूरित हैं उनके परिणमन उनके स्वाधीन हैं । उस परिणमनमें उपादान और सहकारी कारणका समूह ही उपकारी है परन्तु कार्यरूप परिणमन उपादानका ही होता है ।
यहाँ से १ मील चलकर श्री स्वर्गीय फूलचन्द्रकीके वागमे गये । बाग रम्य है परन्तु अवस्था अवनति पर है । यहीं पर भोजन किया । भोजनके अनन्तर सामायिकसे सम्पन्न हो बैठे ही थे कि वावू रामस्वरूपजी आ गये । ३ बजे चलकर ५ बजे बरुआसागर आ गये। श्री मन्दिर जी के दर्शनके अनन्तर श्री बाबू रामस्वरूप जी द्वारा निर्मापित गणेश वाटिका नामक स्थानपर निवास किया । रात्रि सानन्द बीती । प्रातः मन्दिर जी गये । दर्शनकर चित्त प्रसन्न हुआ । १ घण्टा प्रवचनके अनन्तर श्री बाबू रामस्वरूपजीके यहाँ भोजन हुआ। आप बहुत ही भद्र व्यक्ति हैं । मध्याह्नकी सामायिकके वाद २ घण्टा स्वाध्याय किया । स्वाध्यायका फल केवल ज्ञानवृद्धि ही नहीं किन्तु स्वात्मतत्त्वको स्वावलम्बन देकर शान्तिमार्गमे जाना ही उसका मुख्य फल है । आजकल हमारी प्रवृत्ति इस तरहसे दूषित हो गई है कि ज्ञानार्जनसे हम जगत्की प्रतिष्ठा चाहते हैं