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मेरी जीवन गाथा सुन्दर बना हुआ है। २० फुट की कुरसी होगी। उसके ऊपर धर्मशाला है जिसमे २०० आदमी निवास कर सकते हैं। धर्मशालासे ६ फुट ऊँचाई पर मन्दिर है । मन्दिरके चौकमे ५०० मनुष्य सानन्द शास्त्र श्रवण कर सकते हैं। मन्दिरमे ३ स्थानों पर दर्शन हैं । विम्य बहुंत मनोहर हैं । १२४४ सम्बत्की प्रतिमा हैं। शिल्पकार बहुत ही निपुण था। विम्बकी मुद्रासे मानों शान्ति टपक रही है। देखते देखते चित्त गद्गद् हो गया। कोई पद्मासन बिम्व है और कोई खड्गासन है । दोनों तरहके विम्व मनोज्ञ हैं। वर्तमानमें वह कला नहीं। मन्दिर मनोज्ञ हैं परन्तु वर्तमानमे कोई जैनी विशेषज्ञ नहीं। सामान्य रूपसे पूजनादि कर लेते हैं। यहाँ पर आवश्यकता १ गुरुकुल की है जिसमे १०० छात्र अध्ययन करें। __वरासौसे बीचमें छैकुरी ठहरते हुए मौ आ गये । यहाँ पर ४० घर खरौ गोलालारोंके हैं, इनमें श्री सुक्कीलालजी पुष्कल धनी हैं। आपके द्वारा १ मन्दिर सोनागिरिमें निर्माण कराया गया है । १ धर्मशाला भी आपने वहाँ निर्माण कराई है। आप सज्जन हैं। यदि आपकी रुचि ज्ञानमें हो जावे तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं। परन्तु यही होना कठिन है, हो भी जावे असन्भव नहीं। मोह ऐसा प्रबल है कि अपनी • उन्नतिके अर्थ समर्थ होते हुए भी यह जीच कुछ नहीं कर सकता। ज्ञान अर्जन करना प्राणीमात्रके लिये आवश्यक है और अवकाश भी प्रत्येकके पास है परन्तु यह मोही उसमे प्रयत्न नहीं करता । इधर उधरकी कथाएँ करके निज समयको विता देना ही इसका कार्य है।
आज अष्टाह्निकाका प्रथम दिवस अर्थात् अष्टमी थी। मन्दिर में प्रवचन हुआ। उपस्थिति अच्छी थी। लोगोंमे स्वाध्यायकी प्रवृत्ति धीरे-धीरे कम हो रही है। जो है भी वह व्यवस्थित नहीं इसीलिए जीवनभर स्वाध्याय करने पर भी कितने ही लोगोंको कुछ नहीं