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स्वर्णगिरिको प्रोर
२४३ श्री संभवसागरजीका आहार हुआ। उसने भी २१) दिये । यहाँके मनुष्य बहुत सज्जन हैं। कई मनुष्योंने अष्टमी चतुर्दशी अष्टाह्निका तथा दशलक्षणके दिनोंमे ब्रह्मचर्यका नियम लिया। परतापपुरसे ५३ मील चल कर पुरा आये । यह ग्राम १ टीकरी पर वसा है । यहाँ पर १ जिन मन्दिर है। मन्दिरकी मरम्मत नहीं। ४ घर जैनी हैं। सबने अष्टमी चतुर्दशीको ब्रह्मचर्यका नियम लिया। कई ब्राह्मणोंने भी रविवार तथा एकादशीको ब्रह्मचर्य रखनेका प्रण किया। यहाँसे चल कर लावन आये। यहाँ पर २० घर जैनी हैं। १२ गोलालारे और ८ घर गोलसिंगारे हैं। ९ जैनमन्दिर हैं। गोलसिगारे सूरजपाल मन्दिरके प्रबन्धक हैं। आप भिण्डमे रहते हैं। मन्दिरकी व्यवस्था अच्छा नहीं, पूजनका भी प्रवन्ध ठीक नहीं, परस्परमें सौमनस्य नहीं। जो मनुप्य मन्दिरके द्रव्यका स्वामी बन जाता है वह शेषको तुच्छ समझने लगता है और मन्दिरका जो द्रव्य उसके हाथमे रहता है उसे वह अपना समझने लगता है। समय पाकर वह दरिद्र हो जाता है और अन्तमे जनताकी दृष्टिमे उसकी प्रतिष्ठा नहीं रहती। अतः मनुष्यताकी रक्षा करनेवालेको उचित है कि मन्दिरका द्रव्य अपने उपयोगमे न लावे। द्रव्य वह वस्तु है कि इसके वशीभूत हो मनुष्य न्यायमार्गसे न्युत होनेकी चेष्टा करने लगता है। न्यायमार्गका अर्थ यही है कि आजीविकाका इस रीतिसे अर्जन करे कि जिसमे अन्यके परिणाम पीड़ित न हों,
आत्मपरिणामसे जहाँ संक्लेशताका सम्बन्ध हो जाता है वहाँ पर विशुद्ध परिणामोंका अभाव हो जाता है और जहाँ विशुद्ध परिणामोंका अभाव होता है वहाँ शुद्धोपयोगको अवकाश नहीं मिलता। ___ लावनसे चल कर वरासो आये। यहाँ पर २ मन्दिर हैं। एक मन्दिर बहुत प्राचीन है। दूसरा उसकी अपेक्षा बड़ा है। बहुत