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मेरी जीवन गाथा करनेवालेको मध्याह्नके बाद गमन करना अपथ्य है। वैसे तो नीतिमे कहा है 'अध्वा जरा मनुष्याणामनध्वा वाजिनां जरा' अर्थात् मार्ग चलना मनुष्योंका बुढ़ापा लाता है। और मार्ग न चलना घोड़ोंका बुढ़ापा लाता है। यह व्यवस्था प्राचीन ऋपियोंने दी है किन्तु इसका अमल नहीं करते जिसका फल अच्छा नहीं। वाह अच्छा ग्राम है। यहाँके जैनी भी सम्पन्न हैं। यदि लोगोंमे परस्पर. सौमनस्य हो जावे तो १ अच्छा छात्रावास चल सकता है। लोगोंसे कहा गया तथा उन्होंने स्वीकार भी किया। दूसरे दिन प्रातःकाल प्रवचन हुआ । उपस्थिति ४० मनुष्य तथा स्त्रियोंकी थी। आगरासे श्रयुत ख्याल रामजी तथा एक महाशय और आ गये। प्रवचन हुआ । इस बात पर बल दिया कि यदि इस प्रान्तमे एक छात्रावास हो जावे तो छात्रोंका महोपकार हो। इसके अर्थ २ वजेसे १ सभा बुलाई गई। उपस्थिति ५० के लगभग होगी । अन्ततो गत्वा २ आदमियोंने २ कोठा बनवानेका वचन दिया तथा १२००) के लगभग चन्दा हो गया । चन्दा विशेष न होनेका कारण लोगोंकी स्थिति सामान्य थी । फिर भी यथाशक्ति सवने चन्दा दिया। श्री ख्यालीरामजी आगरावालोंने कहा कि यदि तुम लोग ७०००) इकट्ठा करलो तो शेष रुपया हम आगरासे आपको दे देवेंगे। किन्त यहाँ की जनता अभी उसकी पूर्ति नहीं कर सकती । विश्वास होता है कि यह छात्रावास पूर्ण हो जावेगा । जैनियोंमे दानकी त्रुटि नहीं परन्तु योग्य स्थानोंमें द्रव्यका सदुपयोग नहीं होता। इस प्रान्तमे शिक्षाकी त्रुटि बहुत है । ऐसे स्थानोंमे छात्रावासकी महती आवश्यकता है। यहाँपर ग्रामीण जनता बहुत है । देहातमे शिक्षाके साधन नहीं। मनुप्य इतने वैभवशाली नहीं कि छात्रोंको नगरोंमे भेज सकें। आजकलके समयमे २०) मासिक तो सामान्य भोजनको चाहिये।