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फिरोजाबादकी र
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बुरा कर सकते हैं । संसारमे अधिकांश मनुष्य ईश्वर को ही कर्ताधर्ता मानते हैं, स्वतन्त्र हम कुछ नहीं कर सकते परन्तु इसपर भी पूर्ण अमल नहीं । यदि कोई काम अच्छा वन गया तो अपनेको कर्ता मान लिया । यदि नहीं बना तो भगवान्को यही करना था " यह कह सव दोप भगवान् के शिर मढ़ दिया। कुछ स्थिर विचार नहीं | यदि इस पिण्डसे छूटे तो शुभाशुभ परिणामोंसे उपार्जित कर्मका प्रभाव है। हम क्या कर सकते हैं ? ऐसा ही तो होना था ऐसा विश्वास अनेकोंका है | यदि उन भले मानवोंसे पूछिये कि वह कर्म कहाँसे श्राये ? तो इसका यही उत्तर है कि वह प्राक्तन कर्मका फल है । इस प्रकार यह संसारकी प्रणाली वरावर चल रही है और चली जावेगी । मोक्षका होना अति कठिन है । मैं तो अपने विषयमे सदा यही अनुभव करता रहता हूँ कि -
सत्तर छहके योगमं गया न मनका मैल । खाँड़ भरे मुस खात है चिन विवेकके बैल ||
सर्व पदार्थ अपनी अपनी सत्ता लिये परिणमनशील हैं। कोई पदार्थ किसीके साथ तादात्म्य नहीं रखता । जिस पदार्थ में जो गुण व पर्यायें हैं उन्हींके साथ उनका तादात्म्य है | चाहे वह चेतन हो चाहे चेतन हो । चेतन पदार्थका तादात्म्य चेतनगुण पर्यायके साथ है यह निर्णीत है किन्तु अनादि कालसे मोहका सम्बन्ध आत्मा के साथ हो रहा है । मोह पुद्गल द्रव्यका परिणमन है किन्तु जब उसका विपाक काल आता है तब यह आत्मा रागादि रूप परिणमन करता है । आत्मामें चेतना गुण है उसका ज्ञानदर्शन रूप परिणमन है । ज्ञानगुणका काम जानना है । जैसे दर्पण में स्वच्छता है । उसमें अग्निका प्रतिविम्ब पड़ता है किन्तु वह्निमें जो उष्णता और ज्वाला है वह दर्पणमे नहीं है । एवं ज्ञानगुण स्वच्छ है,