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मेरी जीवन गाथा
नहीं करते ? यह सुन भिण्डका एक जैनी बोला- मेरे शूद्र जलका त्याग है । किसके समक्ष लिया ? महाराजने कहा । श्री १०८ सूर्यसागरजी महाराजके पास नियम लिया था उसने कहा । मुनिराज बोले- अरे वह तो उत्तरका मुनि है, प्रतिमाको स्पर्शकर नियम ले । वह मन्दिरमे गया और प्रतिमा स्पर्श करके आया, आपने यह कार्य कराया । फिर नीचे आया, महाराज पड़गाए गये । श्रहार देनेवाली औरत मुखसे यह नहीं निकला कि दस्सोंके घर भोजन नहीं करूँगी । इतने पर महाराज भोजन छोड़कर चले गये । और स्टेशनपर सायके मनुष्योंके यहाँ भोजन किया। ग्राम ग्राममे चन्दा होता है । यहाँ से भी (०) का चन्दा हो गया। साथमे मोटर है। हर जगह चन्दा होता है । यह दृश्य देख मुझे लगा कि पञ्चम कालका चमत्कार है । अव यही धर्म रह गया है ।
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पौप शुक्ला २ सं० २००७ को सहारनपुरसे श्री रतनलालजी आये | आप योग्य व्यक्ति हैं। आपको करणानुयोगका अच्छा अभ्यास है। सूक्ष्मसे सूक्ष्म पदार्थका आप सरल रीतिसे ज्ञान करा देते हैं । आपने मुख्त्यारी छोड़ दी है तथा युवावस्थामें ब्रह्मचर्य ले रक्खा । आपका स्वभाव सरल है और सरलता के साथ श्रागमानुकूल प्रवृत्तिपर आपकी दृष्टि रहती हैं। आपके समागम से हर्ष हुआ । हम निरन्तर इस प्रकारकी चेष्टा करते रहते हैं कि रागकी सत्तापर विजय प्राप्त कर लेवे परन्तु श्राज तक हम उसपर विजय प्राप्त न कर सके। इसका मूल कारणं यह ध्यानमें आता है कि हमने अभी तक पर मे निजत्व कल्पनाको नहीं त्यागा है। अभी तक हम परमे अपनी प्रतिष्टा और अप्रतिष्ठा मान रहे हैं। जहाँ किसी व्यक्तिने फुल प्रशंसा सूचक शब्दों का प्रयोग किया वहाँ हम एक दम प्रसन्न हो जाते है और निन्दा के शब्दों का प्रयोग किया कि एक दम प्रसन्न हो जाते हैं। इसका मुख्य हेतु हमने यही समय है कि पर हमारा भला