SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इटावासे प्रस्थान आश्विन कृष्णा = सं० २०७ को राजकोटसे डाक्टर और मोहन भाई आये । तत्त्वचर्चाका अच्छा आनन्द रहा । निमित्त उपादान की चर्चा हुई । यद्यपि इस चर्चा में विशेष आनन्द नहीं परन्तु फिर भी लोग यही करते है । 'आत्माका कल्याण हो' यह मुख्य प्रयोजन है । वह उपादानकी प्रधानतासे हो या निमित्तकी प्रधानतासे हो पर हो यही मुख्य उद्देश्य है । मेरी समझ के अनुसार तो कार्यकी सिद्धिमें न केवल उपादान कुछ कर सकता है और न केवल निमित्त | जब दोनोंकी अनुकूलता हो तभी कार्यकी सिद्धि हो सकती है। कुम्भकारके व्यापारसे निरपेक्ष केवल मृत्तिकासे घटकी उत्पत्ति नहीं हो सकती और मृत्तिकासे निरपेक्ष केवल कुम्भकारके व्यापार से घटकी रचना नहीं हो सकती । दोनों सापेक्ष रह कर ही कार्य उत्पन्न कर सकते हैं । - आश्विन कृष्ण १४ सं० २००७ को फिरोजाबादसे पं० माणिकचन्द्रजी न्यायाचार्य आये । प्रातः काल ८३ से ६३ तक उनका प्रवचन हुआ | आपकी कथनशैली अच्छी है, उच्च कोटिके विद्वान् हैं, आपने श्लोकवार्तिकके ऊपर भाषा टीक लिखी है । जिसका प्रथम भाग मुद्रित हुआ है । उसको हमने देखा, व्याख्या समीचीन प्रतीत हुई । आपके द्वारा यह अभूतपूर्व कार्य हो गया है । कार्तिक शुक्ला ६ सं० २००७ के दिन जबलपुर से बहुत से मानव आये। सबने आग्रह किया कि जबलपुर चलिये । मैं संकोच वश कुछ निश्चित उत्तर नहीं दे सका किन्तु मनमें यह बात आई कि वहाँ जानेसे जनताका उपकार बहुंत हो सकता है अतः जाना १४.
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy