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मेरी जीवन गाथा दूसरोंसे तो कहता हूँ कि रागादिक दुःखके कारण हैं अतः इनसे बचो पर स्वयं उनमे फंस जाता हूँ। दूसरोंसे कहता हूँ कि सर्व प्रकारके विकल्प त्यागो पर स्वयं न जाने कहाँ कहाँके विकल्पमि फंसा हुआ हूँ। . पyपण पर्व सालमे तीन वार आता है-भाद्रपद, माघ और चैत्रमे, परन्तु भाद्रपदके पर्दूपणका प्रचार अधिक है। पर्वके समय प्रत्येक मनुष्य अपने अभिप्रायको निर्मल बनानेका प्रयास करते हैं और यथार्थमें पूछा जाय तो अभिप्राय की निर्मलता ही धर्म है। आत्माकी यह निर्मलता क्रोधादिक कषायोंके कारण तिरोहित हो रही है इसलिये इन कषायोंको दूर करनेका प्रयत्न करना चाहिये । क्रोध मान माया और लोभ ये चार कपाय हैं इनमें क्रोधसे क्षमा, मानसे मार्दव, मायासे आर्जव और लोभसे शौचगुण तिरोहित हैं। ये चार कषाय निकल जावें और उनके बदले क्षमा आदि गुण
आत्मामें प्रकट हो जावें तो आत्माका उद्धार हो जावे, क्योंकि मुख्यमें यह चार गुण ही धर्म है । आगे जो सत्यआदि छह धर्म कहे हैं वे इन्हींके विस्तार हैं-इन्हींके अङ्ग हैं। क्रोधको वही जीत सकता है जिसने मान पर विजय प्राप्त करली हो। हम कहीं गये, किसीने सत्कार नहीं किया, हमारी बात पूछी नहीं हमे क्रोध आगया । हमने किसीसे कोई वात कही उसने नहीं मानी हमे क्रोध आ गया कि इसने हमारी बात नहीं मानी इस प्रकार देखते हैं कि हमारे जीवन में जो क्रोध उत्पन्न होता है उसमे मान प्रायः कारण होता है। इसी प्रकार मायाकी उत्पत्ति लोभसे होती है। हमें आपसे किसी वस्तुकी आकांक्षा है तो उसे पानेके लिय हम इच्छा न रहते हुए भी आपके प्रति ऐसी चेष्टा दिखलावगे कि जिससे आपके हृदयसे यह प्रत्यय हो जावे कि यह हमारे अनुकूल ई । जव अनुकूलताका प्रत्यय आपके हृदयसे दृढ होजावेगा नभी ना