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________________ २०० मेरी जीवन गाथा परको मान निजातम भूला सदा भ्रमत भव वासा रे ! कहे सुखी भ्रमसे निजको तूं भांग पियो बौराया रे ! परको दे उपदेश सुखी हुए मानत निजको साधू रे । बक बक करत बहुत दिन बीते करत न निजकी बाता रे! शिव सुत अब निजको निज मानो परका कर निरवारा रे । रक्षाबन्धन और पhषण श्रावण शुक्ला २ सं० २००७ को १५ अगस्तका उत्सव नगरम था । सदियोंके वाद भारतवर्ष आजके दिन बन्धनसे मुक्त हुआ है इसलिये प्रत्येक भारतवासीके हृदयमें प्रसन्नताका अनुभव होना स्वाभाविक है। आजके दिन भारतको स्वराज्य मिला ऐसा लोग कहते हैं पर परमार्थसे स्वराज्य कहाँ मिला ? जब आत्मा परपदार्थके आलम्वनसे मुक्त हो आत्माश्रित हो जावे तब स्वराज्य मिला ऐसा समझना चाहिये। खेद इस वातका है कि इस स्वराज्यकी ओर किसीकी दृष्टि नहीं जा रही है, हम लोग अपनको नहीं संभालते संसारको उपदेश देते हैं कि कल्याणमार्ग पर चला परन्तु हम स्वयं कल्याणमार्ग पर नहीं चलते । अन्यको उपदेश देते हैं कि क्रोध मत करो पर स्वयं क्षमाकी अपलहना
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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