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________________ रक्षाबन्धन र पर्युषण २०१ करते हैं । इस स्थितिमें पारमार्थिक स्वराज्यकी प्राप्ति होना दुर्लभ है। · श्रावण शुक्ला पूर्णिमा सं० २००७ को रक्षाबन्धन पर्व आया । यह पर्व सम्यग्दर्शनके वात्सल्य अङ्गका महत्त्व दिखलानेवाला है । सम्यग्दृष्टिका स्नेह धर्मसे होता है और धर्म विना धर्मीके रह नहीं सकता इसलिये धर्मीके साथ उसका स्नेह होता है । जिस प्रकार गौका बछड़ेके साथ जो स्नेह होता है उसमे गौको बछड़ेकी ओरसे होनेवाले प्रत्युपकारकी गन्ध भी नहीं होती उसी प्रकार सम्यग्दृष्टि धर्मात्मासे स्नेह करता है तो उसके बदले वह उससे किसी प्रत्युकारकी आकांक्षा नहीं करता । कोई माता अपने शिशुसे स्नेह इसलिये करती है कि यह वृद्धावस्था मे हमारी रक्षा करेगा पर गौको ऐसी कोई इच्छा नहीं रहती क्योंकि बड़ा होनेपर छड़ा कहीं जाता है और गौ कहीं । फिर भी गौ बछड़े की रक्षा के लिये अपने प्राणोंकी भी बाजी लगा देती है । सम्यग्दृष्टि यदि किसीका उपकार करे और उसके बदले उससे कुछ इच्छा रक्खे तो यह एक प्रकारका विनिमय हो गया इसमें धर्मका अंश कहाँ रहा ? धर्मका अंश तो निरीह होकर सेवा करनेका भाव है । विष्णुकुमार मुनिने सातसौ मुनियों की रक्षा करनेके लिये अपने आपको एकदम समर्पित कर दिया- अपनी वकी तपश्चर्यापर ध्यान नहीं दिया और धर्मानुरागसे प्रेरित हो छलसे वामनका रूप धर वलिका अभिमान चूर किया । यद्यपि पीछे चलकर इन्होंने भी अपने गुरुके पास जाकर छेदोपस्थापना की अर्थात् फिरसे नवीन दीक्षा धारण की क्योंकि उन्होंने जो कार्य किया था वह मुनिपद के योग्य कार्य नहीं था तथापि सहधर्मी मुनियोंकी उन्होंने उपेक्षा नहीं की । किसी सहधर्मी भाईको भोजन वस्त्रादिकी कमी हो तो उसकी पूर्ति हो जाय ऐसा प्रयत्न करना चाहिये ।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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