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विद्यालयका उद्घाटन और विद्वत्परिषद्की बैठक
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तो उसका प्रचार करिये यदि किसी प्रकारकी शङ्का रहे तो निर्णय करनेका प्रयास करिये तथा जो सिद्धान्त लिखे जावें वहाँपर अन्य किस रीति से उसे माना है यह भी दिग्दर्शनमे आ जावे | सबसे मुख्य तत्त्व आत्माका अस्तित्व है इसके उत्तरमें अनात्मीय पदार्थोंपर विचार किया जावे । व्याख्यानों द्वारा सिद्धान्तके दिखानेका जितना प्रयास किया जावे उससे अधिक लेखबद्ध प्रणाली से भी दिखाया जावे। इन कार्यों के लिये २५०००) वार्षिक व्ययकी आवश्यकता है । परीक्षणके तौरपर ४ वर्ष यह कार्य करवाया जावे । जो पण्डित इस कार्यको करें उन्हें २००) नकद और भोजन दिया जावे | इनमे जो मुख्य विद्वान् हों उन्हें २५०) दिये जावें । इस तरह ४ पण्डितोंको ८०० ) और मुख्य पण्डितको २५०) तथा सबका भोजन व्यय २५०) सब मिला कर १३००) मासिक तो विद्वानोंका हुआ । इसके बाद ४ अंग्रेजी साहित्यके विद्वान् रक्खे जावें ४०० ) उन्हे दिया जावे १००) भोजन व्यय तथा २०० ) भृत्योंको इस तरह २०००) मासिक यह हुआ । वर्षमे २४०००) हुआ, १०००) वार्षिक यात्राका व्यय । इस प्रकार शान्तिपूर्वक कार्य चलाया जावे तो बहुत कुछ प्रश्न सरल रीतिसे निर्णीत हो जावें । एक आदमी समझ लेवे ५ गजरथ यही हुआ । इससे बहुत कालके लिये जैनधर्म के अस्तित्वकी सामग्री एकत्र हो जावेगी ।
एक दिन श्री जुगलकिशोरजी मुख्त्यार और पं० परमानन्दजी कलकत्तासे लौट कर आये और कहने लगे कि वीरसेवामन्दिर की नींव दृढ़तम हो गई । कलकत्तावाले बाबू छोटेलालजी तथा बाबू नन्दलालजीकी इस ओर अच्छी दृष्टि है । आप साहित्य के महान् अनुरागी हैं। आप यह चाहते हैं कि मानवमात्रके हृदय में जैनधर्मका विकास हो जावे | जैनधर्म तो व्यापक धर्म है हम किसीको धर्म देते यह बड़ी भारी भूल है । धर्म तो आत्माकी वह परिणति विशेप