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मेरी जीवन गाया
है जो आत्माको संसार बन्धनसे मुक्त करा देती है। वह परिगति शत्तिरूपसे जीव मात्रमें है ।"यह संवाद सुनकर हृदयम प्रसन्नता हुई।
अनेक समस्याओंका हल-स्त्री शिक्षा पुरुषवर्गने स्त्री समाजपर ऐसे प्रतिबन्ध लगा रक्खे हैं कि उन्हें मुखको निरावरण करनेमें भी संकोचका अनुभव होता है। कहाँ तक कहा जावे ? मन्दिरमें जब वे श्री देवाधिदेवके दर्शन करती हैं तब मुखपर वनका आवरण रहनसे वे पूर्ण रूपसे दर्शना लाभ नहीं ले सकवी । यद्वा तद्वा दर्शन करनेके अनन्तर यदि झार प्रवचनमे पहुँच गई तो वहाँ पर भी वक्ताके वचनोंका पूर्ण रुपम कों तक पहुँचना कठिन है। प्रथम तो क्यापर बलका भारत रहता है नथा पुरुषोंसे दूरवती उनका क्षेत्र रहता है। देवयोग किसीकी गोदमें बालक हुआ और उसने नुवानुर हो गेन प्रारम्भ कर दिया तो क्या कहे ? मुनना नो एक ओर रहा करना प्रभृति मनुष्योंके वान्माणका प्रहार होने लगता है-चुप नहीं सता योको ? "क्यों लेकर पाती हैं ?..."नवस नुस्मान करती बाहर क्यों नहीं चली जाती उन बचनोंसे मर का राई अवानी जिनामा विलीन हो जानी। अत: पुरन बना उचिता कि वह जिसमें जन्मा यात्री दीनो Tr इतना न्याय न करे प्रत्युन मरमे बनम सन उन m