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अक्षय तृतीया
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यास हो जाता । यहाँ पंसारी टोलाके मन्दिर मे पुष्फल स्थान है अतः अधिकांश शास्त्र प्रवचन यहीं होता था ।
वैशाख सुदी ३ अक्षय तृतीयाका दिन था, प्रातःकाल प्रवचनके वाद कुछ कहनेका अवसर आया तो मैने कहा कि आजका दिन महान् पवित्र और उदारताका दिन है। आज श्री आदिनाथ तीर्थंकर को श्रेयान्स राजाने इक्षुरसका आहार दिया था यह वर्णन श्री आदि पुराण में पाया जाता है इसी कारण राजा श्रेयान्सको श्री आदिनाथ के अज सुपुत्र भरत चक्रवर्तीने दानतीर्थ के आदि विधाताकी पदवी प्रदान की थी । यह पर्व भारतवर्ष में आजतक प्रचलित है और इसके प्रचलित रहने की आवश्यकता भी है क्योंकि हमारा जिस क्षेत्रमें जन्म हुआ है वह कर्मभूमिके नामसे प्रसिद्ध है । यहाँपर मनुष्य समाज एक सदृश नहीं है । कोई वैभवशाली है तो किसीके तनपर वस्त्र भी नहीं है । कोई आमोद प्रमोदमें अपना समय यापन कर रहा है तो कोई हाहाकार के शब्दों द्वारा आक्रन्दन कर रहा है । कोई अपने स्त्री पुत्र भ्राता आदिके साथ तीर्थयात्रा कर पुण्यका पात्र हो रहा है तो कोई उसी समय अपने अनुकूल प्राणियोंके साथ वेश्यादि व्यसनों मे प्रवृत्ति कर पापपुञ्जका उपार्जन कर रहा है । कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म भूमिमें अनेक प्रकार की विषमता देखी जाती है । यही विषमता 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' इस सूत्र की यथार्थता दिखला रही है । जो संसारसे विरक्त हो गये और जिन्होंने अपनी क्रोधादि विभाव परिगतियों पर विजय प्राप्त कर ली है उनका यही उपकार है कि प्रजाको सुमार्ग पर लगावें और हम लोगोंको उनके निर्दिष्ट मार्गपर चलकर उनकी इच्छाकी पूर्ति करनी चाहिये तथा उनकी वैयावृत्य कर अथवा जीवन सफल करना चाहिए। वे आहारको आवें तो यथागम रीतिसे आहार दान देकर उन्हे निराकुल करनेका यत्न करना चाहिये। जो विद्वान् हैं उन्हें उचित है कि अपने ज्ञानके द्वारा