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मेरी जीवन गाथा
तो सरल मनुष्य हैं जो आपकी इच्छा हो सो कह दो आप लोग ही जैनधर्मके ज्ञाता और आचरण करनेवाले रहो परन्तु ऐसा अभिमान मत करो कि हमारे सिवाय अन्य कोई कुछ नहीं जानता ।
पीछी कमण्डलु छीन लेवेंगे यह आचार्य महाराजकी आज्ञा हैं सो पीछी कमण्डलु तो वाह्य चिन्ह हैं इनके कार्यं तो कोमल वस्त्र तथा अन्य पात्रसे हो सकते हैं । पुस्तक छीननेका आदेश नहीं दिया इससे प्रतीत होता है कि पुस्तक ज्ञानका उपकरण है वह आत्माकी उन्नतिमे सहायक है उसपर आपका अधिकार नहीं जैन दर्शनकी महिमा तो वही आत्मा जानता है जो अपनी आत्माको कषायभाव रक्षित रखता है । अस्तु, हरिजन विषयक यह अन्तिम वक्तव्य देकर मैं इस ओरसे तटस्थ हो गया ।
अक्षय तृतीया
एक दिन श्रीधनवन्तीदेवीके यहाँ से आहार कर धर्मशाला मे ये । मध्याह्नकी सामायिकके बाद धवल ग्रन्थका स्वाध्याय किया । श्री सोहनलालजी कलकत्तावालोंने जो कि मूलनिवासी इटावाके हैं बनारस विद्यालयका घाट वनवानेके लिये १००० ) एक सहस्र रुपया अपनी धर्मपत्नीके नाम देना स्वीकृत किया । श्रीसोहनलालजी बहुत ही भद्र आदमी हैं । आपने सम्मेदशिखरजीमे तेरह पन्थी कोठीमे एक विशाल मन्दिर बनवाया है तथा उसमें चन्द्रप्रभ भगवान्की शुभ्रकाय विशाल मूर्ति विराजमान कराई है । यदि कोई परिश्रम करता तो घाटके लिये १०००००) एक लक्ष रुपया अना
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