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मेरी जीवन गाथा
चलकर ३ बजे इटावाकी नशियों में आ गये स्थान रम्य हैं यहाँ पर श्री विमलसागरजीकी समाधि हुई थी किन्तु अब यहाँ पर इटावावालों की दृष्टि नहीं । इस तरह इटावाके अञ्चल में भ्रमण कर यही अनुभव किया कि सर्व मनुष्योंके धर्मकी आकांक्षा रहती है तथा सबको अपना उत्कर्ष भी इष्ट है परन्तु मोहके नशामें अन्ध कैसी दशा हो रही है यही अकल्याणका मूल है। मोह एक ऐसी मदिरा है कि जिसके नशामे यह जीव स्व को भूल परको अपना मानने लगता है । यह विभ्रम ही संसार परिभ्रमणका कारण है । जिसके यह विभ्रम दूर होकर स्वका यथार्थ बोध हो जाता है। वह परसे यथासंभव शीघ्र ही निवृत्त हो जाता है ।
अष्टकापर्व
फाल्गुन शुक्ला ८ सं० २००६ से श्रष्टह्निका पर्व प्रारम्भ हो गया यह महापर्व है । इस पर्वमे देवगण नन्दीश्वर द्वीप जाते हैं वहाँ पर ५२ जिनालय हैं। मनुष्योंका गमन वहाँ नहीं, देवगण ही वहाँ जाते हैं मनुष्य चाहे विद्याधर हो चाहे ऋद्धिधारी मुनि हों, नहीं जा सकते । किन्तु मनुष्योंमें वह शक्ति है कि संयमांशको ग्रहण कर देवोंकी अपेक्षा असंख्यगुणी निर्जरा कर सकते हैं । मन्दिरमे समयसारका प्रवचन हुआ । कुछ वांचो परन्तु बात वही हैं जो हो रही हे संसारके चक्रमें जीव उलझ रहा है आहार भय मैथुन परिग्रह
संज्ञाओंके आधीन होकर आत्मीय स्वरूपसे अपरिचित रहता है | आत्मामे ज्ञायक शक्ति है जिससे वह स्त्रपरको जानता है परन्तु