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मेरी जीवन गाथा उदयसे यह जीव, पदार्थकी अन्य रूप श्रद्धा करता है इसीसे दुखी होता है। जैसे कोई मनुष्य रज्जुमें सर्पभ्रान्तिसे भयभीत होता है । यह भ्रम दूर हो जावे तो भय नहीं होवे। इसी प्रकार पर पदार्थों में निजत्व बुद्धि त्याग देवे तो सुखी हो जावे । ९ बजे मन्दिर गये वहाँ पद्मपुराणका स्वाध्याय किया उसमें चर्चा थी कि वालीकी दीक्षाका कारण रावण हुआ। यथार्थमें कारण तो उनकी आन्तरिक विरक्तता थी। रावण उसमें निमित्त हुआ। वाली मोक्षको प्राप्त हुए। आज एक मास्टरके घर भोजन हुआ। श्री जैनेन्द्रकिशोरजी तथा राजकृष्णजी दिल्लीवाले आये। शामको श्री पतासीवाईजी भी
आ गई। रात्रिको चर्चा हुई श्री जैनेद्र किशोरका स्नेह बहुत है उनका भाई भी मुरादाबादसे आया ८००) मासिक पाता है उसकी धर्मपत्नी भी साथ थी। सवका अन्तरङ्ग यह था कि आप दिल्ली रह जाओ कुटिया हम बनवा देंगे। आप निर्द्वन्द्व धर्म साधन करिये । यहाँसे चलकर हापुड़ निवास हुआ तदनन्तर वहाँ से ४ मील चल कर हाफिजनगर आ गये। यहाँ तक दो आदमी हापुड़से आये, लोगोंमें धर्म प्रेम अच्छा है रामचन्द्र वावू यहाँ पर बहुंत योग्य हैं आपकी प्रवृत्ति भी अच्छी है। पण्डित परमानन्दजी दिल्लीसे यहाँ आये १ बजे कुछ चर्चा हुई चर्चाका सार यही था कि प्राचीन साहित्यका प्रचार होना चाहिए। विना प्राचीन साहित्यके जैन संस्कृतिकी रक्षा होना कठिन है मेरा ध्यान यह है कि प्राचीन साहित्यके प्रचारके साथ-साथ उसके ज्ञाता भी तैयार होते रहना चाहिये अन्यथा अकेला प्राचीन साहित्य क्या कर लेगा? आज लोगोंकी दृष्टि इंग्लिश विद्याके अध्ययनकी ओर ही बलवती होती जा रही है क्योंकि वह अर्थकरी है तथा संस्कृत-प्राकृत आदि प्राचीन भाषाओंके अध्ययनसे विमुख हो रही है क्योंकि उससे ऐहिक अर्थकी प्राप्ति नहीं होती। यह समाजके हितके लिये अच्छी बात नहीं दिखती।