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इटापाकी ओर
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यहाँ से ५ मील चलकर गुलावटी आये ग्रामके बाहर स्थानमे ठहर गये, स्थान मनोन था, पानी यहाँका अच्छा था, प्रातःकाल स्वाध्याय अच्छा हुआ पश्चात् गर्मी में कुछ नहीं हुआ । यह विचार अनलगे लानेकी महती आवश्यकता है - जिनके विचार में मलिनता हैं उनका सर्व व्यापार लाभप्रद नहीं | सर्व चेष्टा ससार बन्धनसे मुक्त होनेके लिये हैं परन्तु वर्तमानमे मनुष्योंके व्यापार ससारमें फेसनेके लिये है । व्यापारका प्रयोजन पचन्द्रियोंके विपयसे है । यहाँ से ३ मील चल कर एक शिवालयमें ठहर गये स्थान अत्यन्त मनोज्ञ है । कृपका जल मित्र है श्राज भोजन करनेकी इच्छा नहीं थी फिर भी गये परन्तु अन्तराय हो गया । उदर निर्भल रहा । उच्चाको स्वाधीन रखना ही कल्याण मार्ग है । यहाँका जो मैनेजर है वह जाट हैं प्रकृत्या भद्र और उदार मनुष्य है । यहाँ पर वाहरसे नेवालोको पानी भी पीनेके लिये मिलता है बन्दरोंका निवास भी यहाँ पुष्कल है । कोई-कोई दयालु उन्हें भी भोजन दे देते हैं । यहाँसे ५ मील चल कर वुलन्दशहर आ गये । एक वैश्यके मकानमे ठहर गये। उसने सट्टामे सर्व धन खो दिया । हमको बहुत प्रदरसे ठहराया, पुष्पमाला चढ़ाई तथा १५ मिनट तक पैरों पर लोटा रहा । उसकी यह श्रद्धा थी कि उनके आशीर्वाद से हमारा कल्याण हो जावेगा । लोगोंकी धर्म में श्रद्धा है परन्तु धर्मका स्वरूप समझने की चेष्टा नहीं करते केवल पराधीन होकर कल्याण चाहते हैं । कल्याणका अस्तित्व आत्मामें निहित है किन्तु जब हमारी दृष्टि उस ओर जावे तब तो काम बने। दो दिन बुलन्दशहरमें रहे सानन्द समय चीता । समयके प्रभावसे मनुष्योंमे धर्मकी रुचिका कुछ हास हो रहा है पर स्त्री गण धर्मकी इच्छा रखता है फिर भी मनुष्यों में इतनी शक्ति और दया नहीं जो उनको सुमार्गपर लाने की चेष्टा करें । यथार्थ बात तो यह है कि स्वयं सन्मार्गपर नहीं परको क्या सन्मार्ग