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दिल्ली से हस्तिनागपुर
३ मील चल कर तोपखाना आ गये, यहीं पर भोजन किया, यहाँ पर मन्दिर बहुत ही सुन्दर है, पत्थरका दरवाजा बहुत मनोहर है, अन्दर भी उत्तम पत्थर लगा है । २ घण्टा यहाँ पर विताये । वहुतसे मनुष्य मिलने आये । २० आदमी और महिलाएँ गुजरात प्रान्तके आये । धार्मिक मनुष्य थे, शिखरजी की यात्राको जा रहे थे, लोग सरल प्रकृतिके थे, यू० पी० के मनुष्य चञ्चल होते हैं तोपखानासे ३ मील चल कर एक चक्कीपर ठहर गये । सानन्द रात्रि बीती । प्रातः काल प्रवचन हुआ, भोजनके बाद यहाँ से चल कर ४ मीलपर १ धर्मशाला में ठहर गये । यहाँसे ३ मील चल कर छोटे मुहाना आ गये । स्कूलमे ठहरे, प्रातः काल प्रवचन हुआ, वहुत कुछ तत्त्व चर्चा हुई । कार्तिक सुदी ११ को प्रातः ६ बजे मवाना आ गये, मन्दिरमे प्रवचन हुआ, प्रकरण राम और रावणके युद्धका था । अन्यायका जो फल होता है वही हुआ । रावण मृत्युको प्राप्त हुआ, श्रीरामचन्द्रजी महाराजकी विजय हुई | रावण रावण था पर आज रावणके दादा पैदा हो गये हैं । रावण तो सीता सपर्क से दूर रहा, केवल अपनी दुर्भावना के ही कारण कुगतिका पात्र हुआ पर आज तो ऐसे-ऐसे मानव विद्यमान हैं जिन्होंने पर स्त्रीके चक्रमे पड़कर अपना सर्वस्व खो दिया है । यहाँसे १ बजे चल कर ४ मीलपर एक वागमें ठहर गये । बाग १ मीलका था परन्तु ऊजड़ था, कोई प्रवन्ध नहीं । दूसरे दिन प्रातः काल श्रीहस्तिनापुर आ गया । स्थान शान्तिका रत्नाकर है परन्तु मेलाकी भीड़ भाड़ कारण उस समय शान्ति दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी ।
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कार्तिक सुदी १४ सं० २००६ को उत्तर प्रान्तीय गुरुकुलका उत्सव हुआ किन्तु जब अपील हुई तव विशेष सफलता नहीं हुई । केवल सात आठ हजार रुपया हुआ । इसका मूल कारण इस प्रान्त