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___मेरी जीवन गाथा मुरादनगरसे ४ मील चलकर मोदीनगर आये। यहाँ पर भोजन हुआ। यहाँसे ५ मील चलकर एक स्टेशन पर स्कूलमें ठहर गये । वहाँ स्कूलके हेडमास्टर अत्यन्त भद्र थे। वहुतसे छात्र यहाँ पर थे उनमे दो छात्र शरणार्थी थे। उनके चेहरे पर कुछ औदासीन्य था। पूछने पर कारण मालूम हुआ कि जब वे पंजायसे आये तब उनके कुटुम्बके मनुष्य वहीं पाकिस्तानी मुसलमानोंके द्वारा कत्ल कर दिये गये। हमने एक एक कुरताकी खादी उन्हें श्री हुकमचन्द्रजी सलावा द्वारा दिला दी तथा हुकमचन्द्रजीने ५) मासिक राजकृष्ण जी द्वारा दिलाया। वे बहुत प्रसन्न हुए। यहाँसे चलकर मेरठसे २ मील पर १ सरोवर था वहीं भोजन किया । तदनन्तर २ मील चलकर मेरठ पहुँच गये । यहाँ वोटिंगमे निवास हुआ। अनेक नर-नारी स्वागतके लिये आये। मनुष्य धर्मका आदर करता है और धर्मका आदर होना ही चाहिये, क्योंकि वह निज वस्तु है तथा परकी निरपेक्षता ही से होता है। हम अनादिसे जो भ्रमण कर रहे हैं उसका मूल कारण यह है कि हमने आत्मीय परिणतिको नहीं जाना। वाह्य पदार्थोके मोहमे आकर राग द्वेष सन्ततिको उपार्जन करते रहे और उसका जो फल हुआ वह प्रायः सबके अनुभवगम्य है।
आज कार्तिक सुदी ८ सं० २००६ का दिन था। प्रातःकाल मेरठके मन्दिरमें शास्त्रप्रवचन. हुआ । श्री हुकमचन्द्रजी सलावाने भोजन कराया । दिनभर मनुप्योंका समागम रहा, केवल गल्पवादम दिन गया। दिल्लीसे लाला जैनेन्द्रकिशोरजीका शुभागमन हुआ। आप बहुत ही सज्जन हैं, श्री प्रेमप्रसादजीसे बातचीत हुई, बहुत ही सज्जन हैं। श्री लाला फिरोजीलालजी दिल्लीसे आये । वहुत उदार
और योग्य हैं। आपका धर्मप्रेम सराहनीय है। यहाँसे प्रातःकालकी क्रियाओंसे निवृत्त हो मिल मन्दिरमे स्वाध्याय किया। यहाँसे