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दिल्ली से हस्तिनागपुर
प्रातःकालिक क्रियाओं से निवृत्त हो मन्दिर मे शास्त्रप्रवचनके अर्थ गये । वहाँपर दिल्लीसे ५० नर नारी आ गये। वही रागका आलाप, कोई अन्य बात नहीं थी । बहुत मनुष्योंका कहना था कि आप दिल्ली लौट चलें, जो कहो सो कर देवें । पर हमको तो कुछ करवाना नहीं, भूलभुलैया में फॅसकर क्या करता ? यहाँ से चलकर गजियाबाद आये । भोजनके बाद १ वजेसे ३ बजे तक सभा हुई । यहाँपर एक वर्णी शिक्षामन्दिरकी स्थापना हुई । यहाँसे २३ मील चल वेगमाबाद स्टेशनसे १ गर्लाङ्ग सड़कपर ठहर गये । यहाँपर एक शरणार्थी पंजाबी मनुष्य वड़ा भला आदमी था । भोजनादिके लिये आग्रह किया । अभी अन्य मतावलम्बियोंमें साधु पुरुपका महान् आदर है । जैनधर्म प्राणीमात्रका कल्याण करनेवाला है। जैन कहने को तो कहते हैं कि हम जिन भगवान् के उपा सक हैं, परन्तु उनके मार्गका आदर नहीं करते । यहाँसे ५ मील चल कर मुरादनगरकी धर्मशालामे ठहर गये । धर्मशाला उत्तम थी, रात्रिको हम लोग तत्त्व विचार करते रहे । वास्तवमे अन्तरङ्गकी वासना की ओर ध्यान देना चाहिये । यदि अन्तरङ्ग वासना शुद्ध है तो सब कुछ है । अनादि कालसे हमारी वासना पर पदार्थों मे ही निजत्वकी कल्पना कर असंख्य प्रकारके परिणामोंको करती है । वे परिणाम कोई तो रागात्माक होते हैं और कोई द्वेषरूप परिणाम जाते हैं । जो रुच गये उनमें राग और जो प्रतिकूल हुए उनमें द्वेष करने लगते हैं ।
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