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मेरी जीवन गाथा एक ही हैं। भगवान् उमास्वामीने जीवका लक्षण उपयोग माना है । भेद अवस्था प्रयुक्त है, अवस्था परिवर्तनशील है। एक दिन हम बालक थे, अवस्था परिवर्तन होते-होते आज वृद्ध अवस्थाको प्राप्त हो गये "यह तो शारीरिक परिवर्तन हुआ किन्तु आत्मामें भी परिवर्तन हुआ। एक दिन ऐसा था जब दिनमे १० बार पानी और ५ वार भोजन करते भी संकोच न करते थे पर आज १ वार जल
और भोजन ग्रहण करके संतोष करते हैं। कहनेका तात्पर्य है कि सामग्रीके अनुकूल प्रतिकूल मिलनेपर पदार्थोमे परिणमन होते रहते हैं। आज जिनको हम अपवित्र और नीच सम्बोधनसे पुकारते हैं वे ही मनुष्य यदि उत्तम समागम पा जावें तो उत्तम विचारके हो सकते हैं, अन्यथा नो दशा उनकी हो रही है वह किसीसे गुप्त नहीं । आगममे गृध्र पक्षीको व्रती लिखा है। वह मृत्यु पाकर स्वर्गका कल्पवासी देव हुआ। देव ही नहीं श्रीरामचन्द्रको मृत भ्रातृका मोह दूर करनेमे निमित्त भी हुआ।
कार्तिक सुदी २ को दिनके २ वजे दिल्लीसे सहादराके लिये प्रस्थान कर दिया। मार्गमे अत्यन्त भीड़ थी, लोगोंको विशेष अनुराग था। सहस्रों स्त्री पुरुषोंके अश्रुपात आ गया । पुलतक सर्व भीड रही वादमे क्रम-क्रमसे कम होती गई। हम लोग ५ बजे सहादरा पहुँच गये। भारत बैंकके मैनेजर श्रीराजेन्द्रप्रसादजी भी आये भद्र पुरुप हैं। मोहकी महिमा अपरम्पार है। बहुतसे मानर तो बहुत ही दुःखी हुए। चार माहके संपर्कने मनुष्योंके मनको मोयुक्त कर दिया। इसीलिये पृथक् होते समय उन्हें दुःपना अनुभव हुआ।