________________
१४८
मेरी जीवन गाया में जितने जैन लोक हैं सवकी प्रवृत्ति अंग्रेजी पढ़ानेकी है। आचरण भी प्रायः धर्मके अनुकूल नहीं। भोजनादिमे शिथिलता रहती है, वेपभूषा अपनी योग्यता और कुल मर्यादाके प्रतिकूल है। पूर्णिमाको प्रातःकाल मण्डपमे प्रवचन हुआ। ६ बजेके बाद कमेटीके मेम्बरोंमे कुछ वैमनस्य था वह दूर हो गया। उसके बाद मन्दिर गये, शुद्धि करनेके बाद भोजनके लिये निकले । भोजनगृहमे निर्विघ्न प्रवेश किया पर ज्यों ही भोजन करना प्रारम्भ किया त्यों ही दूधका ग्रास लेनेके बाद उसमे तिरूला निकल आया । अन्तराय आ गया। लोगोंको विकलता हुई। आज अपराहकालमे श्रीजीका रथ निकला। बीस हजारके करीब भीड़ थी, बड़ी भक्तिसे रथ निकाला गया, मनुष्योंमे बहुत उमंग थी। दूसरे दिन प्रातःकाल प्रवचन हुआ, मनुष्योंका समुदाय अच्छा था। गुरुकुलको कुछ चन्दा भी हो गया । लोगोमें उत्साहकी त्रुटि नहीं किन्तु योग्य नेताकी कमी है । श्रीमास्टर उग्रसेनजी इसके कार्य करनेमे अग्रसर हुए और संभव है इनके प्रयाससे गुरुकुलकी पूर्ति हो जावे ।
गुरुकुलका नवीन भवन बनकर तैयार था अतः मगसिर वदी २ को ६ बजे उसका उद्घाटन हुआ। मास्टर उग्रसेनजीने अति मार्मिक व्याख्यान दिया। लोगोंके हृदयमे अति उत्साह हुआ, हमारे चित्तमे भी संस्थाके उत्कर्षके अर्थ बहुत उद्वेग हुआ परन्तु हम पराधीन थे, क्योंकि हमने यह निश्चित विचार कर लिया था कि एक बार श्रीपार्श्वप्रभुके निर्वाण क्षेत्रके दर्शन अवश्य करना किसीके चक्रमे न आना । चाहे २ मील ही क्यों न चला जावे। कल्याणका मार्ग निरीह वृत्ति है। आराधना करो परन्तु फलकी इच्छा न करो। धीरे-धीरे जव समुदाय अपने-अपने घर चला गया अतः वातावरण शान्त हो गया। मगासिर वदी ३ को प्रातःकाल सानन्द स्वाध्याय हुआ। भोजन करनेके उपरान्त १ घण्टा श्राराम