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नम्र निवेदन
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चतुर्दशीके दिन अनन्तनाथ महाप्रभुका निर्वाणोत्सव हुआ था। इसलिये वह लोकमे अनन्त चतुर्दशीके नामसे प्रसिद्ध है। आजके दिन नगरमें गाजे वाजेके साथ सर्व समूहका विशाल जुलूस निकला तदनन्तर श्री जिनेन्द्रदेवका कलशाभिषेक हुआ। आश्विन कृष्ण प्रतिपदाके दिन क्षमावर्णीका आयोजन हुआ। कलशाभिषेकके बाद सबका सम्मेलन हुआ।
नम्र निवेदन भादों सुदी पूर्णिमाके दिन, दिल्लीसे निकलनेवाले हिन्दुस्तान दैनिक पत्र में यह लेख छपा हुआ दृष्टिगोचर हुआ कि वर्णी गणेशप्रसाद शूद्र लोगोंके मन्दिर प्रवेशके पक्षमें हैं...."अस्तु, हम किसी पक्षमें नहीं, किन्तु यह अवश्य कहते हैं कि धर्म आत्माकी परिणति विशेष है और उसका विकास संज्ञी पञ्चेन्द्रियमें प्रारम्भ हो जाता है। देव नारकीके तो अविरत अवस्था ही तक होती है। अर्थात् उनके सम्यग्दर्शन तक ही होता है. व्रत नहीं हो सकता। तिर्यगवस्थामे अणुव्रत हो सकता है। अर्थात् तिर्यञ्चके पञ्चम गुणस्थान हो सकता है और मनुष्यके चतुर्दश गुणस्थान हो सकते हैं, वह मोक्षका पात्र हो सकता है। मनुष्योंमे विशेप शक्ति तथा ज्ञानके प्रकट होनेकी योग्यता है। मनुष्योंमे गोत्रके दोनो भेद होते हैं। अर्थात् नीचगोत्र भी होता है और उनगोत्र भी। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये उच्चगोत्रवाले हैं और शूद्र नीचगोत्रवाला है। शूद्रके दो भेद हैं- एक स्पृश्य शूद्र और दूसरा अस्पृश्य शूद्र । स्पृश्य शूद्र तुल्लक तकका पद ग्रहणकर