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________________ हरिजन मन्दिर प्रवेश होनेमे वर्ण और जातिविशेषकी आवश्यकता नहीं। देव और नारकी तो कितना ही प्रयास करें उन्हें सम्यग्दर्शनके सिवाय व्रत धारण नहीं हो सकता, क्योंकि चैक्रियिक शरीरवालोंके चतुर्थ गुणस्थान तक ही हो सकता है। मनुप्य और तिर्यञ्चोंके पञ्चम गुणस्थान भी होता है। मनुष्योंके महाव्रत भी होता है और यही एक पर्याय ऐसी है कि जिससे यह जीव कर्म बन्धन काट मोक्षका पात्र हो जाता है। मनुष्योंका वर्णविभाग आगममें देखा जाता है-- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इनमें प्रारम्भके तीन वर्णवाले उच्चगोत्री हैं और अन्तिम वर्णवाले अर्थात् शूद्र नीचगोत्री हैं। उच्च गोत्रमे ही मुनिव्रत होता है । शूद्रोंमें उच्चगोत्र नहीं, अतएव उनके मुनिधर्म नहीं होता । श्रावकके ही व्रत हो सकते हैं। उनमे भी जो स्पृश्य शूद्र हैं वे क्षुल्लक व्रत धारण कर सकते हैं, अस्पृश्य शूद्र व्रती हो सकते हैं। इसमे बहुतसे महाशय उन्हे द्वितीय प्रतिमा तक मानते है। अस्तु जो आगममें कहा सो ठीक है। आज कल हरिजनोके मन्दिर प्रवेश पर बहुत विवाद चल रहा है। बड़े बड़े धर्मात्माओंका व बड़े बड़े पण्डितोंका कहना है कि वे मन्दिर नहीं जा सकते, क्योंकि उनमें चाण्डाल, चर्मकार, भंगी आदि अनेक बहुत ही घृणित रहते हैं तथा आचार विचारसे शून्य हैं। ये मन्दिरमें आकर दर्शन नहीं कर सकते यह चरणानुयोगकी पद्धति है परन्तु करणानुयोगमें उनके भी सम्यग्दर्शन तथा व्रत हो सकता है । चाण्डालके भी इतने निर्मल परिणाम हो सकते हैं कि वह अनन्त संसारका कारण जो मिथ्यात्व है उसका अभाव कर सकता है । अव विचार करो कि जो आत्मा सबसे बड़े पापको नाश कर दे वह फिर भी चाण्डाल बना रहे। चाण्डालका सम्बन्ध यदि शरीरसे ही है तव तो हमे कोई विवाद नहीं। रहो परन्तु आत्मा तो जब सन्यदृष्टि हो जाता है तब पुण्य जीवोंकी गणनामे होजाता है।
SR No.009941
Book TitleMeri Jivan Gatha 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages536
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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