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________________ मंगलाचरण अरिहंत को नमन, अरिहंत को नमन सिद्ध प्रभु को नमन, सिद्ध प्रभु को नमन आचार्य को नमन, आचार्य को नमन उपाध्याय को नमन, उपाध्याय को नमन सर्व साधु को नमन, सर्व साधु को नमन ये हैं मेरे पंच गुरु इनको सदा नमन इनके नमन से हो मुक्तिपथ पे गमन इनकी ही भक्ति में हों मेरे मन वच तन । अरिहंत जय जय, सिद्ध प्रभु जय जय साधुजन जय जय, जिनधर्म जय जय ।। अरिहंत मंगल, सिद्ध प्रभु मंगल। साधुजन मंगल जिनधर्म मंगल ॥ अरिहंत उत्तम, सिद्ध प्रभु उत्तम। साधुजन उत्तम, जिनधर्म उत्तम ॥ अरिहंत शरणा, सिद्ध प्रभु शरणा साधुजन शरणा जिनधर्म शरणा ॥ चार शरण अघ हरण जगत में, और न शरणा हितकारी। जो जन ग्रहण करें वे होते अजर-अमर पद के धारी ॥ नमस्कार श्री अरिहंतों को नमस्कार श्री सिद्धों को। आचायों को उपाध्यायों को, सर्व लोक के संतों को ॥ ॐ शांति संकलन पूज्य 105 क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज मानतुंग- भारती क्षुल्लक ध्यानसागरजी
SR No.009939
Book TitleMantung Bharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhyansagar
PublisherSunil Jain
Publication Year2005
Total Pages53
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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