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________________ ज्ञाताधर्मकथा तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवं धम्मियं उवएसं सम्म पडिच्छइ, पडिच्छित्ता तह चिट्ठइ जाव संजमेणं संजमइ । तए णं से मेहे अणगारे जाए इरियासमिए, अणगारवण्णओ भाणियव्वो । तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याणि एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ -छट्ठहम-दसमवालसेहि-मासद्धमासखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ जयराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ । तए णं से मेहे अणगारे अण्णया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी- इच्छामि णं भंते ! तब्भेहिं अब्भण्ण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए | अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह । तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उपसंपज्जित्ता णं विहरइ । मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ किट्टेइ, सम्म काएणं फासित्ता पालित्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह | जहा पढमाए अभिलावो तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराइंदियाए दोच्चसत्त- राइंदियाए तइयसत्तराइंदियाए अहोराइंदियाए वि एगराइंदियाए वि | तए णं से मेहे अणगारे बारस भिक्खुपडिमाओ सम्मं काएणं फासेत्ता पालेत्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी- इच्छामि णं भंते ! तब्भेहिं अब्भणण्णाए समाणे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्म उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए | अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध करेह ।। तए णं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थं-चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं। दोच्चं मासं छटुं-छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं। तच्चं मासं अट्ठम-अट्ठमेणं अणिक्खित्तेणं
SR No.009906
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages220
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size5 MB
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