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________________ १० भगवई सुत्त अच्छिवेयणा इ वा, कण्णवेयणा इ वा णहवेयणा इवा, दंतवेयणा इवा, इंदग्गहा इ वा, खंदग्गहा इ वा, कुमारग्गहा इ वा, जक्खग्गहा इ वा, भूयग्गहा इ वा, एगाहिया इ वा, बेयाहिया इ वा, तेयाहिया इ वा, चाउत्थाहिया इ वा, उव्वेयगा इ वा, कासा इवा, सासा इ वा, सोसा इ वा, जरा इ वा, दाहा इ वा, कच्छकोहा इ वा, अजीरया इ वा, पंडुरोगा इवा, हरिसा इवा, भगंदरा इ वा, हिययसूला इवा, मत्थयसूला इ वा, जोणिसूला इ वा, पाससूला इ वा, कुच्छिसूला इ वा, गाममारी इ वा णगरमारी इ वा, खेडमारी इ वा, कब्बडमारी इ वा, दोणमुहमारी इवा, मडम्बमारी इ वा, पट्टणमारी इ वा, आसममारी इ वा, संबाहमारी इ वा, सण्णिवेसमारी इ वा, पाणक्खया, जणक्खया, धणक्खया, कुलक्खया, वसणभूया अणारिया, जे यावि अण्णे तहप्पगारा ण ते सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्समहारण्णो अण्णाया जाव सिं वा जमाइयाणं देवाणं । सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा अंबे अंबरिसे चेव, सामे सबले त्ति यावरे, रुद्दोवरुद्दे काले य, महाकाले त्ति यावरे ॥१॥ असिपत्ते धणू कुंभे, वालू वेयरणी त्ति य । खरस्सरे महाघोसे, एमेए पण्णरसाssहिया ॥२॥ सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सतिभागं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता । एवं महिढिए जाव जमे महाराया । कहि णं भंते ! सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो संयजले णामं महाविमाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस्स पच्चत्थिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाई, जहा सोमस्स तहा विमाणरायहाणीओ भाणियव्वा जाव पासायवडेंसया । णवरं णामं णाणत्तं । सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो जाव चिट्ठति, तं जहा- वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवयकाइया इ वा, णागकुमारा, णागकुमारीओ, उदहिकुमारा, उदहीकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ; जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिआ जाव चिट्ठति । जंबूद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जंति, तं जहा- अइवासा इवा, मंदवासा इ वा, सुवुट्ठी इ वा, दुवुट्ठी इ वा, उदब्भेदा इ वा, उदप्पीला इ वा, उदव्वाहा इ वा, पव्वाहा इ वा, गामवाहा इ वा जाव सण्णिवेसवाहा इ वा पाणक्खया जाव तेसिं वा वरुणकाइयाणं देवाणं । सक्क्स्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो जाव अहावच्चाभिण्णाया होत्था, तं जहाकक्कोडए, कद्दमए, अंजणे, संखवालए, पुंडे, पलासे, मोए, जए, दहिमुहे, अयंपुले, कायरिए । 94
SR No.009905
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Mool Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorDevardhigani Kshamashaman
PublisherGlobal Jain Agam Mission
Publication Year2012
Total Pages653
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size8 MB
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