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अहवा महासइ च्चिय, दमदंती पिय(उ)हरे व्व सासुरए । कह वि सयमेव जाही, मोत्तुमिमं होमि पव्वइओ' ।। इय चिंतिय छुरिचीरिय,-संगुलिरुहिरेण वत्थखंडंमि । तत्तिलउज्जोएणं, गाहादुगमेयमालिहइ । 'वडरुक्खस्सेस पहो, तलेण वेयब्भमेइ वामेणं । कोसलमिइ जत्थिच्छा, गंतव्वं तत्थ सत्थेणं ॥ वसणेण पुण जिओऽहं, लच्छीरहिओ न गंतुमोलग्गं । काउं कस्स वि सक्को, तेण विदेसं गमिस्सामि' || लिहिउं च जाव चलिओ, तावऽक्कंतं निएत्तु नियवत्थं । छुरियाए छिदित्ता, दूरं गंतुं पुणो चलिओ ।। 'सा खज्जिस्सइ सत्ता, केण वि सीहाइण'त्ति जा गोसं । ताव ठिओ तरुगहणं-तरिओ तो दोण्ह मग्गाणं ॥ निव्वट्टणदेसत्थं, लिहियं मोत्तूण तो नलो नट्ठो । दमदंती वि य सुत्ता, तस्समए पेच्छए सुमिणे ॥ 'सहयारअंबगोवरि, चडिया एक्कंबगाणि खायंती । किंतुम्मूलिय खित्तो, सहयारोऽन्नत्थ पडियाऽहं' ॥ तो बुद्धा पडि[या] विय, चिंतइ – 'साहा(सहया)रसरिसनलराए । लीणा भोगफलाइं, माणेमुम्मूलिऊणिहि ॥ सट्ठाणादिह रण्णो, खित्तो एत्तो वि पविसिओ कहि वि । सामी पडियाऽहमिहं, ठिय'त्ति वी(नी)णित्तु सुमिणफलं ॥ जा उग्घाडइ नयणं, ताव न पेच्छइ नलं विचिंतेइ । 'सो नूणं कह वि गओ, सरीरचिताइकज्जेणं' ॥ जाव चिरेणं नाऽऽवइ, ताव धसक्कियमणा रुयंती सा । सद्दित्तु सत्थराओ, समुत्थिया पेच्छइ रुहिरं ॥ छुरियछिण्णं च वत्थं, तो चलिया पंथपट्टणपएसे । गाहाजुयलं लिहियं, वाएत्ता पडइ धरणीए ॥ संपत्तचेयणा पुण, विलवइ कलुणं विलोलमलिणंगी । "हा हा ! दुह(तुह) विरहेऽहं, होहं कह नाह ! कहिं जाहं ?' ॥ ताहे तहेव लग्गा, पे(ए)इ य पंथंमि दइयणिद्दिष्टे । तत्थ वि भुल्ला भमडइ, वइसाहं जेट्टमासाढं ॥ पत्ताइ भोत्तु तोयं, पियइ सई साऽडवीमडइ दुहिया । समयंती णर-तिरि-सुरघोरुवसग्गे जलग्गिभयं ॥ तहऽणुचियपाण-भक्खण-दूसियपित्तं विण?णियदेहं । सा धुक्केणुव्वट्टइ, महासई होइ तो पगुणं ॥