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२. प्रति-परिचय तथा सम्पादन पद्धति
कहावली ग्रन्थना प्रथम परिच्छेदना प्रथम परिच्छेदना प्रथम खण्डनी एक मात्र प्राचीन ताडपत्रीय पोथी (क्र. ४०२, संघवीना पाडानो भण्डार, पाटण)ना आधारे आ ग्रन्थनुं सम्पादन करवामां आव्युं छे. आना सिवायनी पण कहावलीनी ताडपत्रीय अने कागळनी पोथीओ ला. द. विद्यामन्दिर, अमदावाद अने प्र.श्रीकान्तिविजयजी सगृहीत ज्ञानभण्डार, वडोदरामां छे, पण ते बधी उपरोक्त प्राचीन ताडपत्रीय पोथीनी ज नकलरूप होवाथी तेनो उपयोग करवानुं इष्ट नथी गण्यु.
आ प्राचीन ताडपत्रीय पोथीनां कुल ३०७ पत्रो छे. पत्रोनुं माप ३४४२ इंचनुं लगभग छे. प्रत्येक पत्र पर ओछामां ओछी ३ पंक्तिओ अने वधुमां वधु ७ पंक्तिओ छे. ग्रन्थाग्र १२,६०० श्लोक प्रमाण छे अने प्रतिनं लेखन वि.सं. १४९७ (ई. १४४०)मां थयुं छे.
प्रतिनो आरम्भ, पत्र क्र. १ पर श्रीऋषभदेव भगवान तथा भरत चक्रवर्तीनी कथाथी थाय छे. पत्र क्र. ३०४ पर बन्धुदत्तनी कथानो आरम्भ थाय छे, परन्तु पत्र क्र. ३०७ पर ते कथा पूर्ण थया विना ज प्रतिनो छेडो आवी जाय छे.
प्रति अत्यन्त अशुद्ध छे. घणा पाठो भ्रष्ट थई गया छे. लेखकना प्रमाद अने लिपिविषयक अज्ञानने लीधे इं नो ई, इ-ई, ए-प, गु-तु, च-व, ट्ट-ड्ड, उ-व, ड-द, ड-र, ण-ल, त्थ-च्छ, न्त-त्त, ण्ण-न्न, न्ति-त्ति, न्नु-तु, नुतु, प-ब, प-य, न्न-ग्ग – एम घणा अक्षरोमां फेरफार थई गया छे, जेने लीधे पुष्कल अशुद्धिओ वधी गई छे. घणे ठेकाणे पडिमात्रा तथा हस्वइकारना f चिह्नमां भेद नथी राख्यो, काना लखवाना रही गया छे अने केटलेय स्थाने एकवडाने बदले बेवडा अने बेवडाने बदले एकवडा अक्षरो लखी नाख्या छे.
आ जातना अशुद्ध पाठोने अहीं लिपिना नियमो, ग्रन्थनो विषय, भाषा, छन्द व. नुं औचित्य इत्यादिने लक्ष्यमां राखीने सुधारवानो प्रयत्न कर्यो छे. ज्यां कोई अक्षर अथवा पाठ सुधार्यो छे त्यां प्रथम मूळप्रतिमा रहेल पाठ लखी गोळ कौंस मां () सुधारेल पाठ मुक्यो छे. ज्यां सुधारेल पाठ शंकित रहे छे त्यां गोळ कौंसमां प्रश्नचिह्न साथे सुधारेल पाठ मूक्यो छे ( - - ?). ज्यां कोई अक्षर / पाठ रही गयो छे ते चोरस कौंसमां [ ] यथामति नवो उमेरी मूक्यो छे. आ प्रत्येक सुधारा-वधारा ताडपत्रीय पोथी परथी प्रेसकोपी तैयार करती वखते प्रथम तो स्वमतिथी ज कर्या हता. पछी विविध ग्रन्थोमांथी आ ग्रन्थ- संकलन थयुं छे ते जणातां ते ते ग्रन्थोना पाठ साथे सरखामणी करतां प्रायः ७५% सुधारा-वधारा योग्य जणाया. बाकीना, ते ते ग्रन्थोना आधारे फरी सुधार्या छे अथवा रद कर्या छे. घणां स्थलोए तो मोटा कथाखण्डो ज लखवाना रही गया छे, ते पण ते ते ग्रन्थोना आधारे चोरस कौंसमां ज पूर्ण करीने मूक्यां छे.
सामान्य सुधारा-वधारा प्रारम्भनां थोडांक पृष्ठो सधी ज कौंसमां देखाड्या छे. पण पाछळथी तो प्रायः सर्वत्र कौंस विना सुधारा-वधारा कर्या छे. ज्यां विशेष होय त्यां ज कौंस कर्या छे.
ज्यां ज्यां समवायांगसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकनियुक्तिभाष्य, प्रवचनसारोद्धार व. ग्रन्थोमांथी ग्रन्थकारे गाथा व. सन्दर्भो मूक्या छे ते ते ग्रन्थोना स्थान-निर्देश साथे ज त्यां त्यां करी दीधा छे. ज्यां थोडा फेरफार होय त्यां ते टिप्पणीमा स्थाननिर्देश साथे मूक्या छे.
कोई कोई स्थळे अघरा शब्दो वपराया छे त्यां तेना संस्कृतभाषीय पर्याय पण नीचे टिप्पणमां आपी दीधा छे.
अनुक्रमणिका – बे बनावी छे : १. ग्रन्थानुक्रम – जेमां समग्र पुस्तकना दरेक विभागनो अनुक्रम छे, अने २. विषयानुक्रम – जेमां ग्रन्थमा आवती कथाओनो अनुक्रम छे. ग्रन्थकारे पोते जे जे कथाओनो स्वयं निर्देश को छे ते कथाओ अने ते सिवायनी पण महत्त्वनी कथाओ (तेमां कथा शब्द चोरस कौंसमां मुकेल छे) विषयानुक्रममां सूचित छे. कुल १६६ कथाओ छे.