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१. ग्रन्थपरिचय
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सम्पादकीयम्
आचार्यश्रीभद्रेश्वरसूरिविरचित कहावली नामक आ ग्रन्थमां भगवान श्रीऋषभदेवथी मांडी २४ तीर्थंकरो, १२ चक्रवर्तीओ, ९-९ वासुदेव - प्रतिवासुदेव - बलदेव, नारद, अन्य महापुरुषो अने आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिजी सुधीना जिनशासनना धोरी पुरुषोनां चरितो कथास्वरूपे आलेखायेलां छे. मुख्यत्वे आ सङ्कलन ग्रन्थ छे. आवश्यक चूर्णिनिर्युक्ति, वसुदेवहिण्डी, पउमचरिय, चउप्पन्नमहापुरिसचरिय, तरंगवईकहा- संक्षेप, ऋषिमण्डलस्तव व. ग्रन्थोमांथी कथाओ / कथाखण्डो लई, क्यांक शब्दशः उद्धरी अने क्यांक पोतानी भाषामां ढाळीने; आलङ्कारिक वर्णनो तथा प्रौढचमत्कारपूर्ण भाषा-खण्डो सर्वथा टाळीने अत्यन्त सरळ - रसळती शैलीमां प्राकृतभाषामां आ ग्रन्थ रचायो छे. कथाओ क्यांक गद्यमां तो क्यांक पद्यमां (आर्या छन्दमां ) एम बन्ने रीते रचायेली छे. देशी शब्दो - जूनी गूजराती तरफ ढळतां शब्दो अने धातुओ अहीं प्रचुरमात्रामां प्रयोजाया छे.
आ ग्रन्थमां बे परिच्छेदो छे. प्रथम परिच्छेदना बे खण्डो छे. तेमांनो प्रथम खण्ड, जे पार्श्वनाथ भगवानना चरितान्तर्गत बन्धुदत्तनी अधूरी कथा साथे समाप्त थाय छे ते, अहीं प्रस्तुत पुस्तकमां प्रथम विभागमां प्रकाशित कर्यो छे.
प्रथम परिच्छेदनो बीजो खण्ड, जेमां वर्धमानस्वामीना चरितथी लई आ. श्रीहरिभद्रसूरिजीना चरित सुधीनी कथाओ छे ते, हवे पछी प्रकाशित थशे. बीजो परिच्छेद, जेमां आ. श्रीहरिभद्रसूरिजी पछीना अनेक आचार्यादि महापुरुषोनां चरितो होवानी सम्भावना छे, तेनी कोई प्रति उपलब्ध थती नथी. मात्र ग्रन्थना छेडे करेल
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इय पढमपरिच्छेओ, तेवीससहस्सिओ सअट्ठसओ (२३,८००) ।
विरमइ कहावलीए, भद्देसरसूरिरइओ त्ति ||
एवा प्रथम परिच्छेदना निर्देशथी, अने प्रथम परिच्छेदना प्रथम खण्डमां सुमतिनाथ भगवाननी कथामां ग्रन्थकारे पोते करेल
भणिहिइ बीयपरिच्छेयबुद्धिसग्गे सवक्किववहारे ।
जह तह जणणी सुमई, तेण कयं नाम सुमइति ॥
आ प्रमाणेना बीजा परिच्छेदना निर्देशथी पण, बीजो परिच्छेद अवश्य होवो जोइए, तेवुं फलित थाय छे. परन्तु दुर्भाग्ये कोई जगाए एनी कोई प्रति मळती नथी.