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________________ (४४) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि। अठारह लब्ध हुए, इसी प्रकार तीसरी पंक्ति में पूर्वस्थित एक और दो को छोड़कर त्रिक को श्रादिमें देकर गिनने पर उससे (१) आक्रान्त स्थानमें चार लब्ध हुए, दूसरी पंक्तिमें पूर्वस्थित होनेके कारण ज्येष्ठ भी एक द्विक और त्रिक को छोड़कर शेष ज्येष्ठ चार को आदिमें देकर गिनने पर एक लब्ध हना, इसी प्रकार प्रथम पक्तिमें पांच से आक्रान्त स्थान में एक लब्ध हुना, । सबको मिलाने पर एक सौ बीस हो गये । अब तीसरा उदाहरण दिया जाता है १२३४५ यह कौथा है ? यह पूछनेपर सर्व लघ (२) पांच को श्रादिमें करके (३) ऊपरके कोष्ठसे गिनने पर पांच से आक्रान्त स्थानमें शून्य लब्ध हुआ, इसी प्रकार चौथी पंक्ति में पूर्व स्थित पांच को छोड़कर चार को आदि में देकर गिनने पर धार से आक्रान्त ( स्थान ) में शून्य लब्ध हुआ, तीसरी (पंक्ति) में पहिले कही हुई रीतिसे तीन को प्रादिमें देकर गिनने पर शून्य लब्ध हुआ, इसी प्रकार से दूसरी (पति) में भी, (४) प्रथम पंक्ति में शेष एकको आदि में देकर गिनने पर एकसे आक्रान्त (५) कोष्ठ में एक लब्ध हा, इसलिये यह प्रथम भङ्ग है। इसी प्रकार नीचे के कोष्ठक से गिनने पर भी ( यही संख्या होती है ) जैसे देखो ! ज्येष्ठ एक को आदिमें देकर नीचे के कोष्ठ से गिनने पर अन्त्य (६) पति में पांच से आक्रान्त कोष्ठमें, चौथी पंक्ति में चार से प्राक्रान्त कोष्ठ में, तीसरी पक्तिमें तीनसे आक्रान्त कोष्ठ में तथा दूसरी पंक्ति में दो से आक्रान्त कोष्ठ में शून्य लब्ध हुए, प्रथम पंक्तिमें एक लब्ध हुना; इसलिये यह प्रथम भङ्ग है, इसी प्रकार से सर्वत्र जान लेना चाहिये ॥२॥ मूलम-इय अण पुत्रिप्पमुहे,भंगे सम्म विआणि उं जोउ॥ भावेणगुणइ निच्चं, सो सिद्धि सुहाई पावेइ ॥२६॥ जं छम्मासियवरिसिअ, तवेण तिक्त्रेण झिभए पावं ॥ नमुक्कार अणण पुढो, गुणेण तयं खणद्वेण ॥२॥ १-त्रिकसे ॥ २-सबसे छोटे ॥३-पांच से लेकर ॥ ४-" द्विकको आदि में देकर शिनने पर शत्य लब्ध हुआ"यह वाक्य शेष जानना चाहिये ।। ५-युक्त ॥६-पिछली ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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