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प्रथम परिच्छेद ॥
(४३) कोष्ठक में लब्ध एक हुशा, सब लब्धाङ्कों को मिलाने पर बीस हुए, इस लिये यह बीसवां भङ्ग है, ज्येष्ठ ज्येष्ठ अङ्क को आदि में करके नीचे के कोष्ठक से गिनने पर भी यही संख्या हो जाती है, जैसे देखो ! पांचवी पक्ति में पाच दीखता हैइम लिये सर्व ज्येष्ट [१] एक को श्रादि में करके [२] मीचे के कोष्ठक से गिनने पर पांच से आक्रान्त (३) कोष्ठ में शून्य लब्ध हुश्रा, चौथी पंक्ति में एक दीख पड़ता है। ज्येषठ होने के कारण उसे (४)
आदि में करके नीचे के कोष्ठक से गिनने पर एक से आक्रान्त कोष्ठक में अठारह लब्ध हुए, तीसरी पंक्ति में चार दीखता है; अतः पूर्वस्थित होने के कारण मर्व ज्येष्ठ भी एक को छोड़ कर ज्येष्ठ द्विक को आदि में देकर नीचे के कोष्ठक से गिनने पर चार से प्राक्रान्त कोष्ठ में शून्य लब्ध हुना, दूसरी पंक्ति में दो दीखता है। यहां पर भी पहिले कही हुई रीति से ज्येष्ठ एकको खोड़ कर द्विक ज्येष्ठ को आदि में देकर गिननेपर द्विकसे आक्रान्त कोष में एक लब्ध हुमा, प्रथम पक्ति में ज्येष्ठ एक और दो को छोड़ कर त्रिक ज्येष्ठको प्रादि में देकर गिनने पर त्रिक से आक्रान्त कोष्ठ में एक लब्ध हुआ, एक लब्धाङ्क के मिलाने पर बोस हो गये, दूसरा उदाहरण यह है कि ५४३२१ यह कौथा है? यह पूछने पर अन्त्य पंक्ति में एक दीखता है, अतः सर्व लघ (५) पांच को प्रादि में देकर ऊपर के कोष्ठक से गिनने पर एकसे आक्रान्त कोष्ठ में ल६ लब्ध हुए, चौथी पंक्ति में द्विक दीखता है; पूर्वानसार गिननेपर द्विक से आक्रान्त कोष्ठ में अठारह लब्ध हुए, तीसरी पंक्ति में त्रिक दीखता है। पूर्वानसार गिनने पर त्रिक से आक्रान्त कोष्ट में एक लब्ध हा. सब लब्धों के मिलाने पर एकसौ बीस होगये, इस लिये यह एकसौ बीसवां भङ्ग है, यह कह देना चाहिये, इसी प्रकार से ज्येष्ठ प्रह को आदि में देकर नीचेके कोष्ठकों से गिनने पर भी (६) यही संख्या हो जाती है, जैसे देखो ! अन्त्य पंक्तिमें एक दीखता है; अतः सर्व ज्येष्ठ (9) उस (एक) को आदिमें देकर गिननेपर एक से प्राक्रान्त (८) कोष्ठ में ६ लब्ध हए, चौथी पंक्तिमें पूर्व स्थित होनेके कारण ज्येष्ठ एकको छोडकर द्विक ज्येष्ठ को प्रादि में करके पूर्वानुसार गिनने पर द्विक से आक्रान्त कोष्ठ में
१-सबसे बड़े ।। २-एकसे लेकर ॥ ३-युक्त ॥ ४-एक को ॥५-सबसे छोटे ॥ ६-पूर्वोक्त ही ॥७-सबसे बड़े ॥ ८-युक्त ॥
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