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प्रथम परिच्छेद ॥
(३१) स्थित होने के कारण दूसरी पंक्तियों में अब तक अधिकृत (१) नहीं हैं। इस लिये उनको टाल कर (२) गताड़ों की संख्या करनी चाहिये, यह तात्पर्य है, इस विषयकी भावना (३) नष्ट और उद्दिष्टके उदाहरणोंमें कर दी गई है ॥१८॥ मूलम्--पढमाए इगकोट्ठो, उड्ढंअहाआययासु पंतीसु ॥
एगेगवड्ढमाणा, कोट्ठासेसासु सव्वासु ॥१९॥ संस्कृतम्-प्रथमायाभेककोष्ठः, ऊर्ध्वाध आयतासु पंक्तिषु ॥
___ एकैकवर्धमानाः, कोष्ठाः शेषासु सर्वासु ॥१८॥ भाषार्थ-ऊपर और नीचे प्रायत (४) पंक्तियोंके करने पर प्रथम पंक्ति में एक कोष्ठ (५) होता है तथा शेष सब पंक्तियों में एकैक वर्धमान (६) कोष्ठ होते हैं ॥१९॥
स्वोपज्ञवृत्ति-अथ कोष्ठकप्रकारेण नष्टोद्दिष्टे मानिनीषुः (७) पूर्व कोष्ठकस्थापनामाहः
इहोर्वाध आयताः कोष्टकपंक्तयो रेखाभिः क्रियन्ते तत्र प्रथमपंक्ती एक एव कोष्ठकः, शेषपंक्तिषु पूर्वपूर्वपंक्तित उत्तरोत्तरपंक्तिषु (८) अधस्तात् संख्यैकवर्धमानाः (c) कोष्ठकाः (१०) कार्याः ॥१९॥
दीपिका-अब कोष्ठक के प्रकार से नष्ट और उद्दिष्ट के लाने की इच्छा से पहिले कोष्ठक स्थापनाको कहते हैं:
इसमें ऊपर और नीचे विस्तीर्ण कोष्ठक पंक्तियां रेखाओं के द्वारा की जाती हैं। इसमें प्रथम पंक्तिमें एक ही कोष्ठक होता है, शेष पंक्तियों में पहिली २ पंक्तिसे अगली २ पंक्तियों में नीचे एक एक संख्या को बढ़ा कर कोष्ठक करने चाहियें ॥१९॥ मूलम्--इगुआइम पंतीए, सुन्ना अन्नासु आइ कोठेसु ।
परिबहाबीएसु, दुगाइगुणि आय सेसेसु ॥२०॥ संस्कृतम्-एक आद्यायां पंक्तौ, शून्यान्यन्यासु आदिकोष्ठेषु ।
परिव द्वितीयेषु, द्विकादिगुणितारचशेषेषु ॥२०॥ १-अधिकारी ॥२-छोड़कर ॥ ३-घटना ॥४-लम्बी, विस्तीर्ण ॥ ५-कोठा ॥ ६ एक एक बढ़ता हुआ ॥ ७-आनेतुमिच्छुः ॥ ८-पाश्चात्य पाश्चात्यपंक्तिषु ॥६-एकैकसंख्यया वर्धमानाः ॥ १०-कर्तव्याः,विधेयाः॥
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