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श्रीमन्त्रराजगुणकलामहोदधि ॥ है, अतः यहां पर अन्त्य अङ्क चार ही गत जानना चाहिये और उससे अगले त्रिक को नष्ट स्थान में लिखना चाहिये तथा एक शेष रहने से शेष अंकों को क्रम से लिखना चाहिये-जैसे १२४३५। अब सातवां उदाहरण दिया जाता है कि इकतालिसवां सूप नष्ट है । यहां पर इकतालीस में अन्त्य परिवर्त (१) का भाग देने पर लब्ध एक पाया; इस लिये इस में एक अन्त्य [२] अङ्क पांच गया; अतः उस से अगले चार को नष्ट स्थान में लिखना चाहिये, इसके पश्चात् शेष सत्रह में चौथी पंक्ति के परिवर्त छः का भाग देने पर लब्ध दो पाये; अत; “न द्विद्व" इत्यादि गाथा के द्वारा वर्जित [३] होने के कारण चार को टाल कर अन्त्य से लेकर शेष पांच और तीन, इन दो अटों को गत जानना चाहिये; इस लिये उन से अगले दो को चौथी पंक्ति में लिखना चाहिये, अब जो पांच शेष हैं उनमें तीसरी पंक्ति के परिवर्त दो का भाग देने पर लब्ध दो हुए, यहां पर भी "नढद्विद्व” इत्यादि गाथा की रीति से टालित [४] होने के कारण चार को छोड़ कर शेष पांच और तीन, ये दो अङ्क गये, इस लिये उनसे अगले दो को नष्ट स्थान में लिखना चाहिये; परन्तु ऐसा करने पर [५] समयभेद [६] हो जावेगा, इसलिये उसे [७] छोड़ कर तीसरी पंक्ति में उस से [८] अगला एक लिखा जाता है; तथा एक शेष रहने के कारण शेष तीन और पांच इन दो अङ्गों को क्रम से लिखना चाहिये, जैसे ३५१२४ यह इकतालीसवां रूप है इसी प्रकार से सब उदाहरणों में जान लेना चाहिये ॥१५॥१६॥
मूलम्-अताइगया अंका, नियनिय परिवहताड़िया सव्वे॥
उद्दिट्टभंगसंखा, इगेण सहिआ मुणे अव्वो ॥१७॥ संस्कृतम्-अन्त्यादिगतअङ्का, निजनिजपरिवर्तताड़िताः सर्वे ॥
उद्दिष्टभङ्गसंख्या एकेन सहिता ज्ञातव्या ॥१७॥ भाषार्थ-अन्त्यादि गत [९] सब अड्डों का जब अपने २ परिवर्ताडों से
१-चौबीस का ॥ २-पिछला ॥३-निषिद्ध ॥४-वर्जित ॥५-नष्ट स्थान में दो को लिखने पर ॥६-सदृश अंकों की स्थापना ॥७-दो को ॥८-दो से ॥६-अन्त्यसे लेकर गये हुए।
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