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________________ प्रथम परिच्छेद || पत्थरकरणमवरं, भणामि परिवहिं ॥ ८ ॥ तासु पंक्तिषु || संस्कृतम् - एकादीनां पदानामूर्ध्वा प्रस्तारकरणमपरं भणामि परिवर्ताङ्कः ॥ ८ ॥ भाषार्थ - एक आदि पदों के ऊपर और नीचे आयत पंक्तियों में परिवर्त्तीकों के द्वारा मैं प्रस्तार की दूसरी क्रिया को कहता हूं ॥ ८ ॥ स्वोपज्ञवृत्ति - अथ प्रस्तारे करणान्तरं विवर्त्तुः प्रस्तावनागाथामाह : व्याख्या- -इह एकादीनाम्पदानामूर्ध्वाध आयताः पंक्तयः प्रस्तीर्यन्ते, ततस्तासु पंक्तिषु प्रस्तारस्य करणमपरं भणामि परिवर्त्तीकैः, इह यस्यां यस्यां पंक्तौ यावद्भिर्वा रेरेकैकम्पदं परावर्त्यते तस्यां तस्यां पंक्तौ तदंकसंख्यायाः परिवर्त्तीक इति संज्ञा ॥ ८ ॥ दीपिका — अब प्रस्तार के लिये दूसरी क्रिया को कहने की इच्छा से प्रस्तावनागाथा को कहते हैं: ( ११ ) यहां एक आदि पर्दों की ऊपर नीचे लम्बी पंक्तियां खींची जाती हैं, इस के पश्चात् उन पंक्तियों में परिवर्त्तीकों के द्वारा मैं प्रस्तार की दूसरी क्रियो को कहता हूं, यहां पर जिस २ पंक्ति में जितनी वार एक एक पद का परावर्त्तन होता है उस २ पंक्ति में उस अंकसंख्या का नाम परिवर्त्तीक है ॥ ८ ॥ मूलम् -- अंतकेष विभतं, गणगाचं लधु अंकु सेसेहिं ॥ १-आदि पद से द्विक आदि को जानना चाहिये ॥ २- लम्बी, विस्तीर्ण ॥ ३- परिवर्तकों का वर्णन आगे किया जावेगा ॥ ४-रीति, विधि, शैली ॥। ५ अन्यत् करणम् ।। ६- वक्तुमिच्छुः ॥ ७- विस्तीर्णाः, प्रलम्बाः ॥ ८-विलिख्यन्ते, निर्मीयन्ते ॥ ६-संघटयते ।। १०-नाम ॥ ११- रीति, शैली ।। १२-रीति ॥ १३ - संघटन ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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