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________________ प्रस्तावना। (१७) उत्साह को बढ़ाकर एवं यथार्थ सहानुभूति पूर्वक सब प्रकार से सहायता प्र. दान कर मुझे अनुगृहीत किया। ___ इसके अनन्तर मैं श्रीमान्, सद्गुणकदम्बसमलङकृत, विद्यानुरागी, सौजन्यवारिधि, विद्वत्प्रिय, धर्मनिष्ठ, परमवदान्य, श्रीमङ्गलचन्द जी महोदय झाबक को ( कि जिन्होंने इस ग्रन्य के केवल मुद्रण कार्यके के हेतु १५०० ) सौ रुपये मात्र द्रव्य उद्धृत रूपमें प्रदान कर ग्रन्थ मुद्गण में सहायता पहुंचाकर मुझे चिरानुगृहीत किया ) तथा उक्त सर्व गुण सम्पन्न, श्रीयुत, फूलचन्द जी महोदय झाबक आदि सज्जनों को (कि जिन्हों ने यथाशक्ति ग्राहक संख्यावृद्धि तथा प्रार्थिक सहायता प्रदान आदि के द्वारा अपनी धर्मनिष्ठा का परिचय दिया है ) अपने विशुद्ध भाव से धन्यवाद प्रदान करता हूं, इस के अतिरिक्त ग्राहक बनकर पेशगी मूल्य भेजने वाले प्रादि आदि अपने अनुग्राहक सज्जनों को भी धन्यवाद देना मैं अपना परम कर्त्तव्य समझता हूं कि जिन महानुभावों ने पेशगी मूल्य भेजकर तथा ग्राहक श्रेणी में नाम लिखवाकर ग्रन्थ के मुद्रण आदि में सहायता पहुंचायी तथा अधिक विलम्ब होनेपर भी विश्वस्त होकर धैर्य का अवलम्बन किया । अन्त में ग्रन्थ के सम्बन्ध में पुनः इतना लिखना आवश्यक है कि इस विषय में जो कुछ उल्लेख किया गया है उसके विषयमें सर्वाश रूपमें यथार्थता के लिये मैं साहस पूर्वक बदुपरिकर नहीं हूं, किन्तु वह मेरा आन्तरिक भाव है, किञ्च-यह तो मुझे दृढ निश्चय है कि विषय प्रतिपादन की यथार्थता होनेपर भी उस में त्रुटियां तो अवश्य रही होंगी; अतः नीर क्षीर विवेकी हंसोंके समान गुणग्राही, विद्वान्, साधु, महात्मा तथा मुनिराजों से सविनय निवेदन है कि वे इस ग्रन्थ का आद्योपान्त अवलोकन कर इस प्रस्तावित विषय में अपना विचार प्रकट करें , अर्थात् उल्लिखित विषय के सब अंगों में अथवा किसी अंश विशेषमें उन्हें जो २ त्रुटियां प्रतीत हों उनका कृपा Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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