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श्रीमन्त्र राजगुणकल्पमहोदधि ॥
पूर्वक सहेतुक निरूपण करें और विशुद्ध भाव से निकले हुए उक्त विचारों में जो उन्हें सत्यता प्रतीत हो ( जैसा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि-प्रान्तरिक सद्भावमें जागृत विशुद्ध संस्कार से प्रदर्शित किये हुए ये विचार यथार्थ और हितकारी हैं ) उस का ग्रहण और समर्थन कर मुझे चिरानुगृहीत करें, यदि इन विचारोंमेंसे एकांश के द्वारा भी मानवगण का कुछ उपकार होगा तो मैं अपने परिश्रम को सफल समभूंगा, इत्यलं विस्तरेण
सुजनोंका कृपाभाजन
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जयदयालु शर्मा
संस्कृत प्रधानाध्यापक श्रीडूंगर कालेज । afaide |
Aho! Shrutgyanam