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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि । प्रमाण और हेतु पूर्वक अच्छे प्रकार वर्णन किया गया है कि जिससे महामन्त्र सम्बन्धी कोई भी विषय शङ्कास्पद नहीं रहता है तथा जिसके प्रवलोकन से वाचकवृन्द को महामन्त्र सम्बन्धी तात्विक विषय भली भांति अवगत हो सकता है।
६-छटे परिच्छेदमें-श्रीजिनकीर्ति सूरिजी महाराज के इस कथन के अ. नुसार कि-"परमेष्ठि नोऽर्हदादयस्तेषां नमस्कारः श्रु तस्कन्धरूपो नवपदाष्ट सम्पदष्ट षष्ठयक्षरमयो महामन्त्र;" अर्थात् "अर्हत् आदि परमेष्ठी हैं; उनका अतस्कन्धरूप नमस्कार नव पदों, पाठ सिद्धियों तथा अड़सठ अक्षरोंसे विशिष्ट महामन्त्र है” यक्ति, प्रमाण, हेतु और शास्त्रीय सिद्धान्तों से यह प्रतिपादन किया गया है कि-मन्त्र के अमुक पद में अमुक सिद्धि सन्निविष्ट है।
इस प्रसङ्ग में यह कह देना भी आवश्यक है कि-इस विषय में जो कुछ उल्लेख किया गया है उसके विषयमें यह नहीं कहा जा सकता है कि वह यथार्थ ही है, क्योंकि प्रत्येक विषयको यथार्थताके विषय में ज्ञानी महाराज के अतिरिक्त कोई भी कथन करनेका साहस नहीं कर सकता है, हां इतनी बात अवश्य है कि-ज्ञानी महाराजको पूर्ण सत्कृपाके द्वारा किसी देवी शक्ति वा शुभ संस्कार की प्रेरणा से इस महामन्त्र के विषय में इतना लिखा गया है। अतः आशा होती है कि इस लेख का अधिकांश अवश्यमेव यथा. र्थता परिपूर्ण होकर महानुभावों के चित्तोत्साह के लिये पर्याप्त होगा।
निस्सन्देह इस प्रयास के द्वारा मैं अपना परम सौभाग्य और प्रगाढ़ धुण्य का अर्जन समझता हूं कि मुझे पूर्व सुकृत से इस पुनीत कार्य के विषय में लेखनी उठानेका यह सुभावसर प्राप्त हुआ। ___इस प्रसङ्गमें मैं श्रीमान् मान्यवर, सद्गुण कदम्ब समलङ कृत, शान्त्यादि दशविध श्रमण विभूषित, सच्चील, सौजन्यवारिधि, विपश्चिद्वर्य, वृहद् भट्टारक खरतर गच्छाचार्य, श्री जङ्गमयुग प्रधान, भट्टारक श्री १०८ श्री जिन चारित्र सूरीश्वर जी महाराज को अपने विशुद्ध अन्तःकरण से अनेकानेक धन्यवाद प्रदान करता हूं कि जिन महानुभाव ने इस विषयमें अनेकशः मेरे
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