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________________ प्रस्तावना। (१५) यह भी स्मरण रहे कि लौकिक कार्य विशेषकी सिद्धि के लिये इस म. हामन्त्र के अवान्तर पद विशेषके गुणन और ध्यानकी विशेष विधि का उल्लेख जान बझकर नहीं किया है, उसका हेतु यह है कि वह विधि अनधिकारियोंके पास पहुंचकर उनके और उनके सम्बन्धियोंके लिये हानिकर न हो, क्योंकि सब ही जानते हैं कि-अधिकारी और योग्यके पास शस्त्र होनेसे वह उसके द्वारा अपनी और दूसरोंकी रक्षा करता है, परन्तु अन. धिकारी और अयोग्य के पास पहुंचनेपर वह उसके द्वारा दूसरों का और अपना भी विधात कर बैठता है, सम्भावना है कि-इसी उद्देश्य को लेकर स्तोत्रकारने भी स्तोत्रके अन्त में लिखा है कि-"श्रीगुर्वाम्नाय से इसका गुणन और ध्यान करना चाहिये किञ्च-इसी विषयमें लक्ष्य लेजाकर श्री नमस्कार कल्प में से भी वे ही विषय उद्धृत कर लिखे गये हैं जोकि सर्व साधारण के लिये उपयोगी समझ गये हैं। प्रतिपाद्य विषयके भेद से यह ग्रन्थ छः परिच्छेदोंमें विभक्त किया गया है: १-प्रथम परिच्छेद में-श्रीजिनकीर्ति सूरि जी महाराजके निर्मित "श्री पञ्च परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र" की भाषा टीकाके सहित विस्तृत रूपमें व्याख्या की गई है। २-द्वितीय परिच्छेद में पण्डित विनय समुद्रगणि के शिष्य पण्डित गुणरत्नमुनि के संस्कृतमें वर्णित “णमो अरिहंताणं” के ११० अर्थ अविकल लिखकर उनका भाषा अनुवाद किया गया है। ३-तृतीय परिच्छेद में-श्री हेमचन्द्राचार्य जी महाराज के बनाये हुए "योगशास्त्र" नामक ग्रन्थमेंसे उद्धृत कर ध्यान; ध्येय, ध्याता और प्राणायामादि विषयों का तथा श्रीनवकार मन्त्रके ध्यान आदि की समस्त विधि और उस के महिरव प्रादि का वर्णन अति सरल भाषामें किया गया है। ४-चौथे परच्छेिदमें-श्री नवकार मन्त्र के दुर्लभ “नमस्कार कल्प) मेंसे उद्ध,त/ कर सर्वोपयोगी तथा सर्व लाभदायक कतिपय प्रावश्यक कल्पों का निदर्शन किया गया है। ५-पीच परिच्छेदमें-भवान्तर पदोंके विषय में प्रश्नोत्तर रूपसे युक्ति Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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