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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ गया, तात्पर्य यह है कि-ग्रन्थ के मुद्रण का पूरा प्रबन्ध करदिया गया, प. रन्तु खेद का विषय है कि सब प्रकार का प्रबन्ध कर देने पर भी "श्रेयांसि बहुबिनानि” की उक्ति के अनुसार इस कार्य में निरन्तर विघ्नों के सञ्चार का प्रारम्भ होने लगा, जिस की संक्षिप्त कथा इस भांति है कि-उक्त नवीन खले हुए प्रेस में चिरकाल तक पुष्कल टाइप तथा कम्पोजीटरों का प्रबन्ध न होने से कार्य का प्रारम्भ ही नहीं हुआ और प्राशा ही भाशा में अधिक समय बीत गया, कुछ काल के पश्चात् कार्यारम्भ होने पर भी फिर कम्पो. जीटरों के अस्त व्यस्त होने से दो फार्मों के छपने के पश्चात् कार्य सकगया, इसी प्रपञ्च में सात मास वीत गये इस दशा में कार्य की पूर्ति को अति कठिन जान गत मई मास ( सन् १९२०) के प्रारम्भ में उक्त प्रेस से कार्य को वापिस लेकर उक्त मास के मध्य में इटावा नगर में जाकर श्रीब्रह्मप्रेस के अध्यक्ष से सब बात को निश्चित कर तीसरे फार्म से ग्रन्थ के छपनेका प्रबन्ध उक्त प्रेस में किया गया, ग्रन्थ के मुद्रण के लिये जो चौबीस पौगड कागज़ पहिले मंगवाया गया था वापिस न मिलने से कागज़ का प्रबन्ध करनेके लिये अनेक स्थानों में पत्र तथा तार भेजे गये परन्तु खेद है कि-अधिक प्रयत्न करने पर भी चौबीस पौण्ड कागज़ नहीं मिला, अतः लाचार होकर बीस पौण्ड कागज़ के लिये प्रेस की ओर से लखनऊ मिल को आर्डर भिजवा कर मैं बीकानेर को वापिस आगया * लौटते समय प्रेस के अध्यक्ष महोदय से निवेदन कर पाया था कि-शीघ्र कार्यारम्भ के हेतु कुछ रीम पार्सल से तथा शेष रीम मालगाड़ी से मंगवा लीजियेगा, परन्तु उक्त महानुभाव ने खर्च के मुभीते आदि कई बातों को विचारकर सब कागज को मालगाड़ी से ही मंगवाया, मई मासके समाप्त होनेपर कागजकी विल्टी आई, वह विल्टी रेलवेके एक कर्मचारी को प्रेस के अध्यक्षने सौंप दी और उसने कह दिया कि माल आ जाने पर शीघ्र ही छुड़ा कर प्रेस में पहुंचा देना, रन्तु देव योगसे अस कर्मचारीसे वह विल्टी खो गई तथा माल के मा जानेपर वहां के स्टेशन मास्टर ने विल्टी के विना मालको नहीं छोड़ा, अतः रेलवेके अध्यक्ष महा. पायोंसे लिखा पढ़ी करने आदिमें फिर लगभग सवा मास का समय बीत
* पाठकों को ज्ञात हो कि-इसी हेतु से ग्रन्थ के तीसरे फार्म से लेकर बीस पौएड का कागज़ लगाया गया है ।
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