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________________ प्रस्तावना । (११) लिये इतनी विद्या और बुद्धि कहां से आवेगी कि जिस से इस के गढ़ र. हस्यों का पर्याप्त निरूपण हो सके। प्रिय भ्रातृगण ! उक्त दोनों विचारों ने उपस्थित होकर पूर्व सङ्कल्प को रोक दिया कि जिस से कुछ समय तक उक्त सङ्कल्प की ओर ध्यान भी नहीं गया, परन्तु आप जानते हैं कि-नैश्चयिक अवश्यम्भावी कार्य अवश्य ही होता है, अतः कारण सामग्री के उपस्थित होने पर पुनः उक्त सङ्कल्प की वासना जागृत हुई और उस ने प्रबल होकर दोनों विरोधी विचारों को इस प्रकार समझा बुझाकर शान्त कर दिया कि फिर उन का विरोध करने का साहस भी न रहा, उस ने प्रथम विरोधी विचार को इस प्रकार समझाया कि-श्रीनन्दी सूत्र को टीका का कार्य एक वहत्कार्य है; वह कई वर्षों से हो रहा है तथा थोड़ा सा अवशिष्ट होने पर भी अब भी उसे पूर्ति और मु. द्रण भादि के द्वारा विशेष समय की आवश्यकता है तथा यह ( महामन्त्र विषयक रहस्य निरूपण ) तदपेक्षया स्वल्प कार्य है तथा महामहिमा और प्रभाव से विशिष्ट होने के कारण जगत् का सद्यः उपकारी भी है; अतः प्रा. घम इसे अवश्य कर लेना चाहिये, एवं दूसरे विचार को उसने इस प्रकार समझाया कि चाहे कितना ही बहत और दुस्तर कार्य हो उस में शक्तिभर प्रयत्न करने पर लोक किसी को दोषी नहीं ठहराता है किन्तु वह उस के पुरुषार्थ का बहुमान ही करता है; भजा उठाकर समुद्र के विस्तार को बतलाने वाले बालक का बहुमान ही इस विषय में प्रत्यक्ष प्रजागा है, किननीतिशास्त्र का सिद्धान्त है कि-"प्रकरणान्मंदकरणं श्रेयः” अर्थात् कुछ न करने से कुछ करना भी अच्छा होता है। प्रिय भ्रातृगण ! इस प्रकार दोनों विरोधी विचारों के शान्त होने पर यथाशक्ति और यथासाध्य परिश्रम कर इस कार्य को पूर्ण किया और प्रेसमें भेजने की इच्छा से कागज़ मैंगवाने तथा प्रेस वाले को पेशगी द्रव्य देने के हेतु एक धर्मनिष्ठ महानुभाव से १५००) पन्द्रह सौ रूपये उद्धृत रूप में लेकर प्रूफ संशोधन में सुभीता तथा शीघ्र कार्य पूर्ति आदि कई वातों का विचार कर यहीं (वीकानेर ) के एक नवीन खुले हुए प्रेस में तारीख ३० सितम्बर सन् १९९९ ई. को उक्त द्रव्य के सहित ग्रन्थ को छपने के लिये सौंपा गया, तथा ग्रन्थ में लगाने के लिये प्रयत्न कर चौबीस पौण्ड कागज भी मंगाया Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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