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श्रीमन्त्रराज गुणकल्प महोदधि ॥
तत्त्वज्ञान होता ही
को मान भी लें कि वे स्वयं इस की विधि आदि से अनभिज्ञ हैं तो हमें अगया यह कहना पड़ेगा कि इस दशा में उन का यह कर्त्तव्य था कि शास्त्र और पूर्वाचार्यों के द्वारा जिस की प्रत्यन्त महिमा का वर्णन किया गया है, उस के विषय में परस्पर में पूर्ण विचार करते तथा मन्त्रशास्त्र निष्णात अथवा अन्य उत्कृष्ट श्रोणि के विद्वानों के साथ भी इस विषय में परामर्श करते और इस के गूढ़ रहस्यों तथा विधि आदि सब बातों को अन्वेषण कर निकालते, क्योंकि यथार्थ मार्गण और गवेषण से है, परन्तु न तो आज तक ऐसा हुआ और न ऐसा होनेके लक्षण हो प्रतीत होते हैं, इस साधारण काल्पनिक विचार को छोड़ गम्भीर भाव से विशेष विचार करने पर हमारा हार्दिकभाव तो इसी ओर झुकता है कि सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र के आराधक हमारे महानुभाव साधु महात्मा और मुनिराजों को निस्सन्देह इस महामन्त्र के विषय में पूर्ण विज्ञता है परन्तु इस विषय में आज तक त्रुटि केवल इतनी ही रही कि उक्त महानुभावोंका ध्यान इस ओर नहीं गया कि वे इस के विषय में विधि निरूपण आदि के लिये लेखनी को उठाते, प्रस्तुः एक धर्मशील, पर गुणज्ञ, सुशील श्रावक महोदय के द्वारा इस "श्री पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र" के प्राप्त होने पर मैंने उन का आदि से अन्त तक अवलोकन किया, अवलोकन समय में स्तोप्रकार श्रीजिनकीर्त्ति सूरि जी की कहीं हुई महिमा के वाक्यों का अवलोकन कर स्वभावतः यह विचार उत्पन्न हुआ कि यह नवकार मन्त्र महाप्रभावशाली है और स्तोत्रकार ने जो कुछ इन की महिमा तथा श्राराधन के विशिष्ट फल का वर्णन किया है वह यथार्थ में अक्षरशः सत्य है, इस लिये अपनी बुद्धि के अनुसार इस के विषय में गूढ़ रहस्यों का निरूपण करने में अवश्य प्रयत्न करना चाहिये ।।
पाठकवर्ग ! यह विचार तो उत्पन्न हुआ, परन्तु उसे कार्यरूप में परि यात करने में विरोध डालने वाले दो प्रबल विचार और भी प्राकर उपस्थित हुए प्रथम तो यह कि - श्री नन्दी सूत्र की टीका का कार्य ( जो गत कई वर्षों से हाथ में है ) कुछ काल के लिये रुक जावेगा, दूसरा विचार यह उ त्पन्न हुआ कि उक्त महामन्त्र अत्यन्त प्रभाव विशिष्ट होने के कारण गूढ़ रहस्यों का अपरिमेय भागद्वार है, इस के गूढ़ रहस्यों का निरूपण करने के
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Aho! Shrutgyanam