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प्रस्तावना।
(६) इस विषय में अपनी विज्ञता के अनुसार यह कहना भी असङ्गत नहीं है कि हमारे उपदेशक-जो विद्वान् साधु महात्मा और मुनिराज हैं; उन में से भी किसी महानुभाव ने आज तक अपनी लेखनी उठाकर इस विषय में यत् किञ्चित् भी निदर्शन करने का परिश्रम नहीं उठाया है * यह एक श्र. त्यन्त विचारास्पद विषय है, भला सोचने की बात है, कि-जगत्कल्याणकारी ऐसे महामन्त्र के विषय में इतनी उपेक्षा क्यों ? साधारण विचार से इस के प्रायः दो ही कारण कहे जा सकते . हैं कि-या तो वे (उपदेशक, विद्वान्, साध, महात्मा, और मुनिराज) वार्तमानिक मनष्य देहधारी प्रा. णियों को इस महामन्त्र की विधि प्रादि के प्रदान करने के अधिकारी वा पात्र नहीं समझते हैं, अथवा यह कि-वे स्वयं ही इस की विधि आदि से अनभिज्ञ हैं, इन दोनों कारणों में से यदि प्रथम कारण हो तो वह सर्वथा. माननीय नहीं हो सकता है, क्योंकि श्रीजिन प्रणीत विशुद्ध धर्मानयायी एक विशाल वर्ग में से उस का शतांश और सहस्रांश भी भव्य श्रोणि का न माना जाकर उपदेश का पात्र न हो, यह समझ में नहीं आता है, यदि उस विशाल वर्ग मेंसे शतांग वा सहस्रांश भी भव्य श्रेणि का है और उपदेश का पात्र है तो उस को तो वार्तमानिक प्रवचनाचार्यों के द्वारा इस महामन्त्र की विधि प्रादि का यथोचित उपदेश मिलना ही चाहिये था, परन्तु (अपनी विज्ञता के अनुसार कहा मा सकता है कि) श्राज तक ऐसा नहीं हुमा, अब यदि दूसरा कारण है ( कि वे स्वयं ही इस की विधि प्रादि से अनभिज्ञ हैं ). तो यह बात भी माननीय नहीं हो सकती है, क्योंकि विद्या और विज्ञान से विक्रस्वर और भास्वर जैनसम्प्रदाय में साधु महात्मा और मुनिराजों के विशाल वर्ग में अगणित साधु महात्मा और मुनिराज सम्यक् ज्ञान; दर्शन और चारित्र के विशुद्ध भाव से उपासक हैं, भला वे इस महा. मन्त्र की विधि श्रादि से विज्ञ न हो; यह कव सम्भावना हो सकती है? किञ्च-असम्भव को भी सम्भव जान यदि हम थोड़ी देर के लिये इस बात ___* यदि किन्हीं महानुभाव ने इस जगत् हितकारी विषय में परिश्रम किया हो तो कृपया वे मेरी इस धृष्टता को क्षमा कर मुझे सूचित करें, अन्वेषण करने पर भी कुछ पता न लगने से यह लिखा गया है.॥
Aho! Shrutgyanam