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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ जो मनुष्य नव पदों में से किसी एक पदरूपी अथवा इस कथममें भी प्रत्युक्ति नहीं होगी कि पदके किसी अवान्तर पद वा अक्षररूपी अल्प सुधा मात्रा का भी यदि ध्यान रूपमें सेवन करेगा तो उसका अभीष्ट तत्काल सिद्ध होगा • इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है।
परमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र का निर्माण कर स्तोत्रकार श्रीजिन कीर्ति मूरि ने उसकी महिमा का बहुत कुछ वर्णन कर निःसन्देह उसके पाराधन में श्रद्धा रखनेवाले जनोंके चित्त का अत्यन्त प्राकर्षत किया है और उन के वा. क्योंसे चित्त का आकर्षण होना ही चाहिये, क्योंकि वीतराग भगवान् के अतिरिक्त प्रायः संसार वर्ती सब ही मनुष्य सकाम हैं और यह एक साधारण बात है कि सकाम जनोंकी कामना पूर्ति का साधन जिधर दूष्टि गत होता है उधर उनके चित्त को पाकर्षण होता ही है परन्तु खेद के साथ कहना पहता है कि स्तोत्रकार ने इस श्रीपंचयरमेष्ठि नमस्कार की महिमा का अतिशय वर्णन कर तथा इस महामन्त्रको पाठों सिद्धियोंसे गर्भित बतला कर तद्वारा श्रद्धालु जनोंके चित्त का अत्यन्त आकर्षण करके भी उनको अधर में (निरवलम्ब ) छोड़ दिया है, अर्थात् महामन्त्र की परम महिमा का वर्णन करके भी तथा उसे अष्ट सिद्धियोंसे गर्भित बतलाकर भी यह नहीं बतलाया है कि इस महामन्त्र के किस २ पदमें कौन २ सिद्धि सन्निविष्ट है, प्रत्येक सिद्धि के लिये किस विधि और क्रिया के द्वारा किस पदके गुणन की श्राव. श्यकता है, एवं लौकिक कार्य विशेष की सिद्धि के लिये किस पदका और किस विधि के द्वारा ध्यान करना चाहिये, इसके अतिरिक्त स्तोत्रकारने इस महामन्त्र के पदविन्यास प्रादिके विषय में भी कुछ नहीं कहा, हां अम्तमें इतना कहकर कि "इस लोक और परलोक सम्बन्धी अपने अभीष्ट अर्थ की सिद्धि के लिये श्री गुर्वाम्नाय से इसका ध्यान करना चाहिये हमें और भी भ्रम में डाल दिया है, क्योंकि प्रथम तो इस महामन्त्रके विषयमें ही हमें अनेक सन्देह हैं ( कि इसके किस २ पदमें कौन २ सी सिद्धि सन्निविष्ट है, इत्यादि) इनके अतिरिक्त गुर्वानाय के अन्वेषण की हमें और भी चिन्ता उपस्थित हो गई कि “ इस विषय में गुर्वानाय क्या है ?
. * इस विषयमें सैकड़ों उदाहरण प्रन्थान्तरों में सुप्रसिद्ध हैं।
Aho ! Shrutgyanam