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प्रस्तावना।
पाराधन नहीं करते हैं ? अथवा उनकी श्रद्धा में कोई त्रुटि है ? नहीं, नहीं, यह बात भी नहीं है क्योंकि इस महामन्त्र के प्राराधक जनोंमेंसे कदाचित् विरले ही ऐसे होंगे कि जो श्रद्धा के विना अथवा अल्प श्रद्धा से केवल दि. खावे मात्र के लिये इसका समाराधन करते होंगे, शेष सर्व समूहके विषय में मुक्तकण्ठ से यही कहा जा सकता है कि वह पूर्ण भक्ति; अविकल प्रेम, दूढ श्रद्धा और पर्याप्त उत्साह के साथ उनका गुणन; मनन और ध्यान करता है, इस दशामें फिर वही प्रश्न उठता है कि जब उक्त महामन्त्र अतिशय प्रभाव विशिष्ट है और उसके महत्त्व के विषय में महानुभाव पूर्वाचार्यो के वाक्यों में लेशमात्र भी असत्यता नहीं है तथा पाराधक जन भी विशुद्ध भाव
और दृढ श्रद्धा के साथ उसका ध्यान करते हैं तो फिर क्या कारण है कि उक्त महामन्त्र सिद्धि सुख आदि तो क्या किन्तु लौकिक सुख और तत्सम्बन्धी अभीष्ट पदार्थों का भी प्रदान नहीं करता है” ? पाठकगण ! इस प्रश्नके उत्तरमें केवल यही कहना है कि उक्त महामन्त्र का जो गुणन और ध्यान किया जाता है वह तद्विषयक यथार्थ विज्ञान के न होनेसे यथावत् विधि पूर्वक नहीं किया जाता है। इसलिये उसका कुछ भी फल प्राप्त होता हुमा नहीं दीखता है आप समझ सकते हैं कि एक प्यासे मनुष्य को यदि सुधा सदश शीतल जल विशिष्ट सरोवर भी मिल जावे और वह मनष्य उस सरोघर जलमेंसे प्यास को बुझानेवाले एक लोटेभर जल को मुख के द्वारा न पीकर चाहे सहस्रों घड़ों को भर उनके जल को नेत्र, नासिका अथवा किसी अन्य अङ्ग परनिरन्तर डालता रहे तो क्या उसकी प्यास निवृत्ति हो सकती है? कभी नहीं, ठीक यही उदाहरण इस महामन्त्र के विषय में भी जान लेना चाहिये अर्थात् जैसे लाखों मनुष्यों की प्यास को शान्त करने वाला सुधावत् अगाध जलं परिपूर्ण मानस भी प्रविधि से कार्य लेने वाले एक मनण्य की भी प्यास को शान्त नहीं कर सकता है, ठीक उसी प्रकार सब ज. गत् के सर्वकार्यो की सिद्धि करनेकी शक्ति रखने वाला भी यह महामन्त्र - विधि से काम लेनेवाले किसी मनुष्य के एक कार्य को भी सिद्ध नहीं कर सकता है, किन्तु जैसे जलसरोवर में से एक लोटे भर भी जल को लेकर जो मनुष्य विधि पूर्वक मुखके द्वारा उसका पान करता है उस की प्यास तत्काल शान्त हो जाती है, ठीक उसी प्रकार इस महामन्त्र रूपी सुधा सरोवरमेंसे
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