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प परिच्छेद ||
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कता है (९), तद्यथा ( २ ) - प्रक्रिया दशा में " ऐसी स्थिति है, अव अणु शब्द का उकार मा के श्रागे गया और गुण होकर "म" बन गया, आदि का कार कार के आगे गया और कार पूरा हो गया, इसलिये "इमो” ऐसा पद बना, इकार का लोप करने से "रामो" पद बन गया, अतः " णमो” पद के ध्यान से अणिमा सिद्धि होती है ।
(घ ) - अथवा आदि प्रकारका लोप करने पर तथा "स्वराणां स्वराः' इस सूत्र से इकार के स्थान में अकार तथा आकार के स्थान में प्रोकार - देश करने से प्राकृत में अणिमा शब्द से "रामो" पद बन जाता है; अतः (३) उस के ध्यान से अणिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है ।
(ङ) - प्राकृत में “राम्" शब्द वाक्यालङ्कार अर्थ में आता है, अलङ्कार दो प्रकार का है शब्दालङ्कार और श्रर्थालङ्कार, एवं वाक्य भी श्रर्थं विशिष्ट (४) शब्दों की यथोचित योजना (५) से बनता है तथा शब्द और अर्थ का वाच्य वाचक भावरूप मुख्य सम्बन्ध है, अतः 'राम" पदसे इस अर्थ का बोध (६) होता है कि शब्द और अर्थ के मुख्य सम्बन्ध के समान श्रात्मा का जिससे मुख्य सम्बन्ध है उस के साथ ध्यान करना चाहिये, अत्मा: का मुख्य सम्बन्ध प्रान्तर ( 9 ) सूक्ष्म शरीर से है, (८) अतः स्थूल
१- क्योंकि प्राकृत में स्वर, सन्धि, लिङ्ग, धात्वर्थ, इत्यादि सबका "बहुलम् " इस अधिकार सूत्र से प्रयोग के अनुसार व्यत्यय आदि हो जाता है ॥ २- जैसे देखो ! ३- इसलिये ॥ ४- अर्थ से युक्त ५- संयोग ॥ ६-ज्ञान ॥ ७- भीतरी ८-वादी ने प्रश्न किया है कि "आता तथा जाता हुआ आत्मा दीख नहीं पड़ता है, केवल देह के होनेपर संवेदन दीख पडता है तथा देहके न रहने पर भस्मावस्था में कुछ भी संवेदन नहीं दीखता है, इसलिये आत्मा नहीं है” इत्यादि इस प्रश्न के उत्तर में श्री मलयगिरि जी महाराजने स्वकृत श्रीनन्दी सूत्र की वृत्ति में लिखा है कि "आत्मा स्वरूप से अमूर्त है, आन्तर शरीर भी अति सूक्ष्म होनेके कारण नेत्र से नहीं दीख पड़ता है, कहा भी है कि "अन्तराभव देह भी सूक्ष्म होनेके कारण दीख नहीं पड़ता है, इसी प्रकार निकलता तथा प्रवेश करता हुआ आत्मा भी नहीं दीख पड़ता है, केवल न दोखनेसे ही पदार्थ का अभाव नहीं होता है" इसलिये आ. तर शरीर से युक्त भी आत्मा आता तथा जाता हुआ नहीं दीख पड़ता है" इत्यादि, इस कथन से सिद्ध है कि आत्मा का मुख्य सम्बन्ध सूक्ष्म आन्तर शरीर से है ॥
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