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श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ (प्रश्न ) यदि सम्पद नाम यति ( पाठच्छेद वा विश्रान्त पाठ ) अथवा सहयुक्त वाक्यार्थ योजना का नहीं है तो किसका है ? ।
(उत्तर ) सम्पद माम सिद्धि का है; अर्थात् सिद्धि, सम्पई और सम्पत्ति इनको धरणि आदि कोषों में पर्याय वाचक लिखा है (१), अतः यह जानना चाहिये कि उक्त मन्त्रराजमें माठ सिद्धियां सन्निविष्ट हैं, अर्थात् गुणन क्रिया विशेष से इस मन्त्र के माराधन के द्वारा आठ सिद्धियोंकी प्राप्ति होती है।
(प्रश्न ) पाठ सिद्धियां कौन २ सी हैं ?
( उत्तर ) अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्त्व, ये पाठ सिद्धियां हैं।
[प्रश्न ] कृपया इनके अर्थ का विवरण कीजिये कि किस २ सिद्धि से क्या २ होता है?
[उत्तर ] उनके अर्थ का विस्तार बहुत बड़ा है, उसको ग्रन्थ के विस्तार के भयसे न लिखकर यहां पर केवल अति संक्षेपसे उनका भावार्थ मात्र लिखते हैं, देखो:
(क) अणिमा शब्द का अर्थ अणु अर्थात् सूक्ष्म होना है ( श्रणार्भावः अणिमा), इसलिये इस सिद्धि के प्राप्त होनेसे मनुष्य परमाण के समान
१-इस विषय में कई प्रचलित कोषोंके प्रमाणों को भी लिखते हैं देखो ! (क) अमर कोषमें सम्पद् सम्पत्ति श्री लक्ष्मी इन शब्दों को पर्याय वाचक कहा है (ख) अनेकार्थ संग्रह में सम्पद् वृद्धि गुणोत्कर्ष हार इन शब्दों को पर्याय वाचक कहा है (ग) शब्द कल्प द्रम कोष में विविध कोषोंके प्रमाण से लिखा है कि "सम्पत्ति श्री लक्ष्मी सम्पद् ये पर्याय वाचक हैं" "सम्पत्ति नाम ऋद्धि का है” “सम्पत्ति नाम भूति का है” “सम्पद् नाम सम्पत्ति का है” “सम्पद् नाम गुणोत्कर्ष का है” “सम्पद् नाम हारभेद का है” उक्त कोष ने धरणि कोष का प्रमाण देकर कहा है कि "सम्पद् स. म्पत्ति और सिद्धि ( अणिमादि रूप अष्ट सिद्धि ) ये पर्याय वाचक शब्द हैं” सम्पत्ति वा सम्पद् शब्द को "सिद्धि" वाचक लिखकर पुनः उक्त कोषमें अणिमा आदि आठ सिद्धियों का वर्णन किया है इन प्रमाणोंसे यह मानना चाहिये कि यह महामन्त्र आठ सम्पदों अर्थात् आठ सिद्धियोंसे युक्त है तात्पर्य यह है कि इस महामन्त्र में आठ सिद्धियोंके देने की शक्ति है ॥
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