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पञ्चम परिच्छेद ।।
- जिस प्रकार नदों में सागर, द्विपदों (१) में ब्राह्मण, नदियों में गङ्गा और देवों में विष्णु प्रशंसनीय (२) हैं उसी प्रकार सब नमस्कारोंमें उग्र नमस्कार प्रशंसनीय है ॥ १८ , १९ ॥ ___साधना करने वाला भक्त पुरुष भक्तिपूर्वक (३) त्रिकोण श्रादि नमस्कारों के करने मात्र से शीघ्र ही चतुर्वर्ग (४) को प्राप्त कर सकता है ॥ २०॥
हे भैरव ! नमस्कार का करना एक बड़ा यज्ञ है, यह सब देवों को तथा अन्य जनों को भी सर्वथा और सर्वदा प्रसन्न करता है ॥ २१ ॥
परन्तु यह जो उग्र नमस्कार है यह हरिको अत्यन्त ही प्रीति देता है, यह महामाया को भी प्रसन्न करता है। इस लिये यह ( उग्र नमस्कार ) सब नमस्कारों में उत्तम है ॥ २२ ॥
(यह उक्त विषय कालीपुराण में है (५) ) तुम्हारी नमस्कारों के भेदों के सुनने की अभिलाषा होने से यह विषय उक्त पुराणों के कथन के अन मार कह दिया गया।
(प्रश्न )-इस नवकार मन्त्र में “मो” शब्द का पाठ सब से प्रथम क्यों रक्खा गया है। अर्थात् “अरिहन्ताणं गामो” इत्यादि पाठ न रख कर "णमो अरिहन्ताणं” इत्यादि पाठ क्यों रक्खा गया है, अन्यत्र (६) प्रायः ऐसा देखा जाता है कि प्रथम नमस्कार्य (७) का प्रतिपादन (E) कर पीछे "नमः” पद का प्रयोग (ए) किया जाता है तो इम मन्त्र में उक्त विषय का उत्क्रम (१०) क्यों किया गया है ? ॥
( उत्तर )-प्रथम कह चुके हैं कि “णमो” पद में अणिमासिद्धि संनिविष्ट है तथा “अरि हताणं" पदमें दूसरी महिमा सिद्धि सन्निविष्ट है; अतः सिद्धि क्रमकी अपेक्षा से “णमो अरिहंताणं” इत्यादि पाठ रक्खा गया है तथा इसीके अनुसार आगे भी कम रक्खा गया है, यदि इस क्रमसे पाठ को न रखते तो सिद्वियोंके क्रम में व्यतिक्रम (१२) हो जाता, दूसरा कारण यह भी प्रथम लिख चुके हैं कि णकार अक्षर ज्ञानका वाचक होनेसे मङ्गल वाचक है, अतः छन्दःशास्त्र में उसे अशुभ अक्षर मानने पर भी प्रादि मङ्गलके हेतु उसको
१-दो पैर वालों ॥२-प्रशंसा के योग्य ॥ ३-भक्ति के साथ ।। ४-धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष ॥५-प्रश्न-उत्तर का अनुसरण कर यह विषय उद्धृत किया गया है ।। ६-अन्य स्थानों में ॥ ७-नमस्कार करने योग्य ।। ८-कथन ।। ६-व्यवहार ।। १०-क्रम का उल्लङ्घन ( त्याग)॥११-उलट पलट ॥
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