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पञ्चम परिच्छेद।
(१८६) हीनता (१) के दिखानेवाले नमस्कार कर्ता (२) के पास रहने योग्य नहीं है, अतः उसे अर्पण किये विना नमस्कार करने का निषेध किया गया है, किञ्च पहिले कह चुके हैं कि "नमः” यह नैपातिक पद द्रव्य और भावके सङ्कोचन को प्रकट करता है, अतः कर, (३) शिर और चरण भादि की ग्रहण, कम्पन और चलन आदि रूप चेष्टा के निग्रह (४) के द्वारा द्रव्यसङ्कोच पूर्वक (५) नमस्कार करना उचित है, पुष्प को हाथ में रक्खे हुए पुरुष का द्रव्य सङ्कोच सम्भव नहीं है, अर्थात् पुष्प को हाथमें लिये हुए पुरुष का द्रव्य सङ्कोच पू. र्वक नमस्कार असम्भव है अतः पुष्प को हाथमें लिये हुए नमस्कार करना दिन नहीं है, उक्त श्लोक में शेष जो विषय बतलाये गये हैं उनके विषय में अपनी बुद्धि से विचार कर लेना चाहिये ॥
(प्रश्न ) आपने पण्डित दुर्गादासजीके कथनके अनसार अभी यह कहा था कि "कर और शिर के संयोग आदि व्यापार विशेष (६) के द्वारा नम्रता करने का नाम नमस्कार है" अब कृपा कर विविध (७) ग्रन्थोंके प्रमाण से यह बतलाइये कि कर और शिर का संयोगोदि रूप व्यापार विशेष कौन २ सा है और वह किस प्रकार किया जाता है?
( उत्तर ) विविध ग्रन्थोंके मतसे कर और शिरके संयोगादि व्यापार विशेष के द्वारा नति करण () सात प्रकार का माना गया है, अर्थात् नमन क्रिया (९) सात प्रकारकी है, इसके विषयमें यह कहा गया है किः
त्रिकोणमथ षट् कोण, मर्धचन्द्रं प्रदक्षिणम् ॥ दण्डमष्टाङ्गमुग्रञ्च, सप्तधा नतिलक्षणम् ॥१॥ ऐशानी वाथ कौवेरी, दिक् कामाख्या प्रपूजने ॥ प्रशस्ता स्थण्डिलादौ च, सर्वमूर्तस्तु सर्वतः ॥२॥ त्रिकोणादिव्यवस्थाञ्च, यदि पूर्वमुखो यजेत् ॥ पश्चिमात् [५] शाम्भवीं गत्त्वा, व्यवस्थां निर्दिशेत्तदा ॥३॥
१-दीनता, न्यूनता ॥२-नमस्कार करनेवाला ॥३-हाथ ॥४-निरोध ५-द्रव्य संकोचनके साथ॥६-चेष्टा विशेष ।। ७-अनेक ।। ८-नमस्कार ।। -नमस्कार ।। १० भागशब्दमध्याहार्य पुंस्त्वं ज्ञेयम्, पश्चिमभागादित्यर्थः, एवमऽपि ज्ञेयम् ॥
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