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पञ्चम परिच्छेद।
(१८७)
नमस्कार के विषय में जानना चाहिये कि जिस में नमस्कार के साथ में नमस्कार्य (९) की ओर से आशीर्वाद का प्रयोग (२) किया जाता है, क्योंकि रात्रि में नमस्कार के उत्तर में जो आशीर्वाद किया जाता है उसी को उक्त वाक्य में व्यभिचारी (३) कहा गया है।
(प्रश्न ) यह भी सन्देह उत्पन्न होता है कि रात्रिमें किये हुए नमस्कार के उत्तर में नमस्कार्य की ओर से जो आशीर्वाद दिया जाता है उस को व्यभिचारी क्यों कहा है ?
(उत्तर) इसका सामान्यतया (४) यही हेतु प्रतीत (५) होता है कि कोषों में सूर्यका नाम “कर्मसाक्षी(६) और “जगच्चक्षु” (७) कहा है, अर्थातू सूर्यको लोकवर्ती (८) प्राणियों के कर्मका साक्षी और जगत् को नेत्र माना है. उस सूर्य के रात्रि समयमें अस्तङ्गत (९) होनेसे कर्मसाक्षित्त्व (१०) के न होनेके कारण नमस्कार का निषेध किया गया है और तदुत्तर (११) में दिये हुए
आशीर्वाद को निष्फल कहा गया है, इसके अतिरिक्त अन्य कोई हेत समझ में नहीं आता है।
(प्रश्न ) नमस्कार का शब्दार्थ (१२) क्या है ?
( उत्तर ) नमस्कार शब्दका अर्थ संक्षेप से पहिले कह चुके हैं कि "नमः" अर्थात् नमन का कार ( क्रिया) जिस में होता है उस को नमस्कार कहते हैं तात्पर्य यह है कि नमन क्रिया का नाम नमस्कार है और उसमें चेष्टा वि. शेषके द्वारा नमस्कार्य (१३)के सम्मुख (१४) अपनी हीनता (१५) अर्थात् दीना. वस्था (१६) प्रगट की जाती है, जैसा कि पण्डित दुर्गादास जीने मुग्धबोध की टीकामें लिखा है किः___ "नमस्कारो नति करण मुच्यते, तत्तु करशिरः संयोगादिस्वापकर्षबोधकव्यापार विशेषः
अर्थात् नम्रता करने को नमस्कार कहते हैं और वह हाथ और शिरके
१-नमस्कार करने योग्य ॥ २-व्यवहार ॥ ३-व्यभिचार युक्त, अनियमित ॥ ४-सामान्य रीतिसे ॥५-ज्ञात, मालूम ॥ ६-कार्य का साक्षी ॥ ७-संसार का नेत्र ॥ ८-संसार के॥ -छिपा हुआ, अस्त को प्राप्त ॥ १०-कार्य का साक्षी बनना । ११-नमस्कार के उत्तर में ॥ १२-शब्द का अर्थ ।। १३-नमस्कार करने योग्य, १४-सामने ॥१५-न्यूनता ॥ १६-दोनदशा ॥
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